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जरूरत

सतीशचंद्र श्रीवास्तव
भोपाल (मध्य प्रदेश)
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(१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता (विषय मुक्त) में प्रथम स्थान प्राप्त लघुकथा।)

शब्द संख्या- १९२

“कहिए, क्या परेशानी है? मनोरोग चिकित्सक ने पूछा।
“जी, कुछ भी नहीं!”
“फिर, यहाँ आने का मकसद?” “म…म…मैं तो…, इससे पहले कि बेटा हिचकिचाहट के साथ अपनी बात पूरी करता, साथ में आई उसकी माँ बीच में ही बोल पड़ी, “डाक्टर साहब मैं ही इसे आपके पास लेकर आई हूँ, वो भी बड़ी मुश्किल से। माँ, हूँ इसकी। इसलिए, मन नहीं माना। देखिए, इसका चेहरा कितना बुझा जा रहा है। बस, अपने आप में ही खोया रहता है। ईश्वर की कृपा से घर में किसी चीज की कमीं नहीं। फिर भी इसका हाल तो देखिए! इसे देखकर कोई कहेगा कि ये नौजवान है?”
“ठीक है, आप परेशान न होइए। मैं अभी देखता हूँ।”
मनोचिकित्सक युवक से, “क्यों भाई, पढ़ाई पूरी हो गई या चल रही है?”
“जी, चल रही है।”
“बहुत अच्छा!”
“चलचित्र वगैरह देखते हो?”
“जी, हाँ!”
“देर रात तक ‘सामाजिक माध्यमों’ पर भी उपस्थित रहते होगे?”
“जी, बिल्कुल!”
“ओह!”
“अच्छा…, ये बताओ, सूर्योदय कब से नहीं देखा?”
“जी…?”
“मैने पूछा, आपने सूर्योदय, मेरा मतलब है कि उगते हुए सूरज को कबसे नहीं देखा?”
“मगर, इसकी क्या जरूरत है?”
“इसी…की… तो जरूरत है…!” मनोचिकित्सक ने जोर देते हुए कहा।

परिचय : सतीशचंद्र श्रीवास्तव
निवासी : भानपुरा- भोपाल म.प्र.
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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