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नवरात्री

मंजिरी “निधि”
बडौदा (गुजरात)
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नवरात्र में माँ फिर आई है
स्वागत में सृष्टि ने धरा सजाई है
नौ दिवस नवरूप लिए
नूतन वर्ष में खुशियाँ लेकर आई है
चित्र शुक्ला प्रतिपदा तिथि गुणगान
हिन्दु संवतसर है हमारा अभिमान
दुःख मिटे सुख मिले सबको अपार
आशाएँ है पूर्ण समृद्धि की बरसे बहार
देखो मौसम भी कितना खुशगवार
हर घर में सजे तोरणा और बंधनवार
प्रकृति ने सुंदर परिधान सजाए
नव पल्लव नव मुकुल वृन्द देखो इतराए
बौर वृंदो से शै हैं दर्शनीय हर ग्राम ताल
सप्त स्वर नवकार वसुधा
गा रही हैं लावण्य गान
पक्षी सारे फुदकते चहचहाते
हर्ष से मानों नवगीत गाते
आदि शक्ति को देख सारा जग सरसाया
नई उमंगे नये पल नव विश्वास हैं जगाया
आओ मिल माता का सजाएँ दरबार
माँ दुर्गा शक्ति रुपी हरती कस्ट अपार
हिन्दु नव वर्ष विक्रम संवत दो हजार अठ्ठत्तर मनाएँ
शक्ति पर्व के रूप से सनातनी धर्म निभाएँ
भावसागर को पार कर अपना जीवन सवारें
माँ की भक्ति कर अपना दम्भ मिटाएँ

परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर “निधि”
निवासी : बडौदा (गुजरात)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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