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नवनीत

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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शहरों की आँधी आयी तो,
ठिठक गये हैं पाँव।

आसमान के कान काटते,
लोहा रेत सीमेंट।
थर्राया है मजदूरों का,
पन्नी वाला टेंट।।
मन यायावर खोज रहा है,
शीतल तरु का ठाँव।
शहरों की आँधी आयी तो,
ठिठक गये हैं पाँव।।१

निगल लिए हैं अब सड़कों ने,
पगडंडी के पाँव।
पेटरोल डीजल के कीर्तन,
करें कान में काँव।।
खपरैलों ने भी साहस कर,
लगा दिया है दाँव।
शहरों की आँधी आयी तो,
ठिठक गये हैं पाँव।।२

चकाचौंध के आसमान में,
उठने लगा गुबार।
फव्वारों के उन्नत मस्तक,
जता रहे आभार।।
स्वागत करने खड़े किनारे,
बाँट जोहते गाँव।
शहरों की आँधी आयी तो,
ठिठक गये हैं पाँव।।३

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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