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प्रकृति

दिनेश कुमार किनकर
पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
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मनुज हे, प्रकृति अपरंपार!
प्रकृति की शक्ति निहित हैं,
वायु ऊर्जा जल थल अकास!
और अनंत हैं सूक्ष्म शक्तियां,
सबमे समाहित इनकी उजास!

जगत में जीवन का आधार!
मनुज हे, प्रकृति अपरंपार!

जगति ने हैं दिया मनुज को,
आनंद का अक्षय वरदान!
पर भौतिक तृष्णा ने इसको
हैं बना दिया दुखो की खान!

न कर खुशियो को तार-तार!
मनुज हे, प्रकृति अपरंपार!

कुदरत से मिली जो शक्ति,
उससे अक्षयपात्र को भरले!
स्वयं विकास के हेतु मनवा,
प्रकृति से बस प्रीत तू कर ले!

न कर इस शक्ति का व्यापार!
मनुज हे, प्रकृति अपरंपार!

परिचय –  दिनेश कुमार किनकर
निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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