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राष्ट्र का स्वाभिमान तिरंगा

डॉ. पंकजवासिनी
पटना (बिहार)
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जो तिरंगा लहराया गणतंत्र दिवस को….
बड़े ही मान से और कितनी शान से!
देश के हर्षित नीलाभ आसमान में!!
बच्चों की नन्ही-नन्ही हथेलियों में…
मारे गर्व और खुशी के इठला रहा था!!!

बड़ी ही शान और गर्वित अभिमान से!
सबके सीने पर जो नूर सा टँका था!
हाथों में सुंदर सा रिबन बन बँधा था!!
दमकती सी टोपी बन सिर पर चढ़ा था!
अभिनव वंदनवार बन चहुँओर सजा था!!

और तो और, देखो कैसे करता था…
तरुणियों के कपोलों का दीर्घ चुंबन!!
और माथे पर भी बिंदिया सा लगा था!!

बीता दिवस उछाह का, निबहे सब रीत!!
सुखद सपनों में खोई बीत गई रात!
सच का रंग ले सामने आया प्रभात :

सड़कों पर देखो इधर-उधर चहुँओर…
हा! धूल धूसरित वतन की आबरु है!!
चारों तरफ बिखरे हुए नन्हे तिरंगे!!
पैरों से रौंदे और कुचलाए हुए!
गिरे-पडे़-फँसे-अटके औ कहीं टँगे!!

बंदनवारों में फटे-चिटे-रोते तिरंगे!
झंडियों में हुए बेनूर बिलबिलाते!!
कहीं कूड़ादानों की शोभा बढा़ते!
कहीं सड़कों पर झाड़ू बुहराते तिरंगे!!

आह! न करो ऐसी दुर्दशा अनजाने ही…
देश के मान का, गर्वित अभिमान का!!
प्रतीक हमारी आन बान औ शान का!
स्वतंत्रता शूरों के अकथ बलिदान का!!

असंख्य शहीदों के सर्वस्व दान का!
दुनिया में हमारी गर्वीली पहचान का!!
हर कीमत पर सहेजो इन्हें प्यारो !
यह प्रतीक सबा अरब के आत्मसम्मान का!!
राष्ट्र के गर्वोन्नत स्वाभिमान का!!!

परिचय : डॉ. पंकजवासिनी
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय
निवासी : पटना (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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