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मेरी तमन्ना

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रुचिता नीमा

तमन्नाओं की महफ़िल सजाए बैठे है
हम सबसे हाल ए दिल छिपाए बैठे है
शिकवा करें भी तो किस से करे ए जिंदगी
हम खुद से ही बेवजह दिल लगाए बैठे है
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बहुत कुछ पाया है तुझसे ये जिंदगी,
फिर भी खुद को लुटाए बैठे है।।।
हम सबकुछ पाकर के भी,,
कई ठोकर खाये बैठे है।।।।
अब शिकवा करें भी तो किससे करें ए जिंदगी
हम खुद से ही बेवजह दिल लगाए बैठे है।।।।
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ये तमन्नाएँ भी हमारी ही थी ,,
और हम ही इनसे हार खाकर बैठे है।।।
जानते हुए कि सब कुछ नहीं मिला किसी को भी इस जहा में,,,
फिर भी उम्मीदों की महफ़िल सजाए बैठे है।।।।
अब कैसे समझाए इस दिल को
कि हम गलत अरमान जगाए बैठे है।।।।
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बस एक उम्मीद का दीपक रोशन है,,
जो अंधेरे को दबाए बैठे है
हम उस दीपक से ही सूरज की आस लगाए बैठे है।।।
अब शिकवा करें भी तो किससे करें ये जिंदगी
हम खुद से ही दिल लगाए बैठे है।।।।।

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.लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।


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