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मेरा मन

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रचयिता : अनुपम अनूप “भारत”

कई दिनों से पूछँ रहा मैं,
भूले भटकें मेरे मन से।
कहा गई शरारते क्यूँ,
खुश रहता यूँ बेमन से।

कभी हुआ करती थी बातें,
क्लास रूम फुल्की ठेले में।
कितना मजा आया करता था,
सब संग जाते थे जब मेले मे।

बेल्ट मे रस्सी बाधँ बाधँ कर,
फिर सबकी पूछँ बनाते थे।
बिना बताए हसँ हसँ कर,
सब अपना पेट दुखाते थे।

कितनी बारी ही सबसे ज्यादा,
नम्बर लाने की शर्त लगाई थी।
प्रभू कृपा दुआ मेहनत से,
हर बार सफलता पाई थी।

बड़ा मजा आया करता था,
थके हुए कोमल बचपन मे।
कई दिनों से पूँछ रहा मैं,
इस भूले भटकें मेरे मन से।

लड़ते थे खुब ताल ठोककर,
खूब शरारत करते थे।
काम पड़े तो बड़े प्यार से,
भाई भाई कहते थे।

नादानी थी मनमानी थी,
कुछ हरक़त बचकानी थी।
कितनी भी करें गलतियाँ,
पर दिल मे न बेमानी थी।

आज सोचता कभी कभी मैं,
कितना बदल चुका सच से।
कई दिनों से पूछँ रहा मैं,
भूले भटके बचपन से।

लेखक परिचय :-  अनुपम अनूप “भारत” रीवा मध्यप्रदेश

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