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रचयिता : रुचिता नीमा
उसका वो कहना कि तुम इन्जार करना
मैं खुद ही आऊंगा,
बड़ी कशमकश में कर गया
दिन पर दिन बीतते गये, पर वो इंतजार की घड़ियां कभी खत्म नही हुई
इसे मेरा जुनून कहे या दीवानगी
मै हर बीतते पल और बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगी।।।
फिर एक दिन मिला वो
बीच बाजार में, जैसे कोई अजनबी
देख कर भी अनदेखा कर निकल गया
लेकिन इस बार मेरे साथ जो हुआ
वो किसी जादू से कम न था,
मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगा
क्योंकि जो मेरा जुनून था, मुझे सुकून देने लगा था अब।।।।
और शायद उसके मिलने का अब मुझे इंतजार ही नही रहा था,
मुझे अब खुद के खुद से मिलने का इंतजार था।।।
और वो घड़ी करीब आने लगी थी।।।
क्योंकि अब मैं ये जान गई थी, कि वक़्त, वक़्त के साथ बदल जाता है, और कुछ कुछ हम भी
दुनिया मे कुछ भी अपना नहीं सिवाय अपने परमात्मा के,
जो अपने अंदर ही छिपा है कहि
इसलिये पहले खुद के मिलने का इंतजार करो, दूसरों के इंतजार से पहले ………
लेखिका परिचय :- रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
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