मेरा राम मेरे साथ है
रचयिता : डॉ सुरेखा भारती
शाम हो गई थी राधिका ने अपने को, थोड़ा संवारा और वह तुलसी क्यारी में दीपक लगाकर अपने पूजा घर में रामायण पढ़ने बैठ गई। यह उसका रोज का नियम जो था। अंकुर की शादी हुए दो महिने बीत गए थे। अंकुर की पसंद-नापंसद, उसके लिए क्या बनाना है, क्या नहीं, पहले उसकी चिंता रहती थी, पर यह सब तो अब बहु ही देखने लगी थी। बहु तो अच्छी है पर राधिका और अधिक अकेला पन महसूस करने लगी थी।
अंकुर भी अब आते से ही पूछने लगा है, सीमा ऽ सीमा तुम कहां हो …….?, लगता था अब माँ को वह भूल गया है।
पहले जरूर उसके इस बदलाव से मन में अजीब सी चुभन होती थी। पर अब अपना मन भगवान के स्मरण में लगाना सीख लिया था। रामायण पढ़ते हुए, वह श्री रामचरित्र में खो गई थी, की सहसा फूलों की सुगंध वातावरण में घूमने लगी, उसने सोचा अंकुर बहु के लिए फूल ले कर आया होगा, आज उसका जन्मदिन जो है। पर अचानक उसकी नजर पास रखी छोटीसी प्लेट पर गई। प्लेट फूलों से भरी थी, अंकुर दोनों हाथों की घड़ी कर उसकी और देखकर बोला यह तुम्हारे रामजी के लिए हैं माँ।
सुबह फूल वाला नहीं आया था, मेरे रामजी बिना फूलों के रह गए थे। उसने अंकुर की तरफ देख सिर्फ मुस्कुरा दिया और फिरसे रामायण पढ़ने लग गई, पर अब मन में भाव था ‘मेरा राम मेरे घर में है, मेरे साथ।
परिचय :- नाम :- डॉ सुरेखा भारती
कवियत्री, लेखिका एवं योग, ध्यान प्रशिक्षक इंदौर
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