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मेरी इबादत

रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.

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आज भी तेरे दिल में अगर सबके लिये मुहब्बत है
जो छलकते है किसी के दर्द में तेरे आँसू,
तो यही इबादत है

जरूरत नही तुझे कहि जाकर सजदा करने की
तेरा दिल ही मंदिर, मस्जिद और चर्च की इमारत है

मत घबरा
इन धर्मों के दिखावों से, झूठे आडम्बरो से,
बड़े बड़े तीर्थों और दिखावे के अनुष्ठानों से,
अगर तेरा मन साफ है, तो यही सबसे बड़ा धर्म और
सबसे पवित्र तेरी काया है….

मिलता नहीं है खुदा कभी,
किसी को सताने से, किसी को नीचा दिखाने से
अगर वो मिलता है, तो सबको अपनाने से
सबमें उसकी झलक पाने से

इतिहास गवाह है, कहि भी देख लो
राम, कृष्ण, बुध्द, महावीर, नानक हो या क्राइस्ट
इन सबने भी यही समझाया है,
कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म
और प्रेम ही परमात्मा की प्रतिछाया है….

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परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।


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