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मेरा प्रेम

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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बिकने नहीं दूँगा कुछ।
पर हम बेच देंगे सब।
यही बात में सब को।
हर समय कहता रहूँगा।।

क्यों न बेचे हम अब।
जब आन पड़ है संकट।
क्यों ढूँढ़े हम समाधान।
मिला है संपत्तियों का अभयदान।।

जबतक रहेगी तब तक।
उसे बेचते जायेंगें हम।
अपना और अपनों का पेट।
बिना परेशानी के भर देंगे।।

बहुत नसीब लेकर आया हूँ।
इसलिए इतनी संपदा मिली।
भले बनाया हो औरों ने पर।
भोगने का सुख मिला हमें।।

पूत कपूत तो क्यों
धन का संचय करना।
और पूत सपूत तो क्यों
धन का संचय करना।
करना आता अगर प्रबंध
तो नहीं होती कोई परेशानी।
और कर लेते समस्याओं का
अपने प्रबंधन से समाधान।।

अल्ला दे खाने को तो
क्यों जाए कमाने को।
मिला है सब कुछ हमें
बिना हाथ पाव चलायें।
तो क्यों जोर दे दिल दिमाग
और अपने हाथ पावों पर।
इतना तो मिला है विरासत में
कि हमारा समय निकल जायेगा।।
फिर जो कुछ भी होगा आगे
वो आने वाला उसे सोचेगा।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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