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मेरी पहचान

विवेक सावरीकर मृदुल
(कानपुर)

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ओ पिता!
जबसे चले गये हो बहुत दूर
और लोग कहते हैं
कि तुम अब नहीं हो
जबकि
तुम अधिक रहते हो
पास मेरे

सुबह की धूप में दिखती है
तुम्हारी हँसी
छाँव में तुम्हारा वात्सल्य
झलकता है
शाम दिखाती है
शिविर को लौटते हुए
पसीने से नहाए
लहुलुहान योद्धा की छवि
रात को एक चिंताग्रस्त
बाप बन जाती है

ओ पिता!
नहीं जानता था
तुम्हारे जाने से पहले
कि तुम्हारी यादें
धँस चुकी हैं मेरे अंतर्मन में
और घुल चुकी है मेरी
धमनियों शिराओं में
इतनी गहरी
कि मेरे हर शब्द में
बोलोगे केवल तुम

ओ पिता!
भरोसा है मुझे
कि जब इस आपा-धापी से भरे
जीवन में
भावनाओं का
सूखा पड़ जाएगा
और भले बने रहने की
नहीं बचेगी कोई सूरत
तुम नेमत की बारिश की तरह
आओगे
और मेरी इंसानियत की फसल को
सूखने से बचा लोगे

ओ पिता!
नहीं ला दूंगा तुम्हें नकली
विशेषणों से
नहीं करूंगा वृथा यशोगान
भले ही नहीं मानूंगा तुम्हें
महान
पर जान गया हूं
कुछ देर ही से सही
कि तुमसे और केवल तुम्ही से है
अब मेरी पहचान

.

परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल
जन्म : १९६५ (कानपुर)
शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा
हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये,
उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन।
संप्रति : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक कुलसचिव।

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