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चीत्कार उठा ये हृदय मेरा

डॉ. अर्पणा शर्मा
उज्जैन (मध्य प्रदेश)

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चीत्कार उठा ये हृदय मेरा
अश्रु नही समाते है,
इतने निर्दयी, इतने पापी
कैसे इंसान कहाते है

एक निर्बल ने थामा कसकर
जिसको वो रक्षक समझा था
उसने ही झोंक दिया पशुओं में
रक्षक नही वो भक्षक था
पशुओं में भी अपनेपन के
हम भाव उजागर पाते है
इतने निर्दयी, इतने पापी
कैसे इंसान कहाते है…

कैसे सभ्य समाज कहूँ मैं
दुष्टों की इस टोली को
जान न पाया जो साधु की
निर्बल मीठी बोली को
जो थे दुनिया का दुख हरते
वो ही दुख अब पाते है…
इतने निर्दयी, इतने पापी
कैसे इंसान कहाते है..

भीड़ भरी दुष्टों की थी
इंसान कही न नज़र आया
कुछ ही पल में अलग हो गई
प्राणों से झरझर काया
एक निरिह प्राणी को सब मिल
मिट्टी में मिलते है….
इतने निर्दयी, इतने पापी
कैसे इंसान कहाते है….

पल-पल जिसने है प्रभु मेरे
केवल तेरा ही नाम जपा
सदाचार और सद्व्यवहार का
जिसने था संसार रचा
क्यों पाई सजा उस निर्बल ने
क्यों अब वो जीवित नहीं बचा
बस बार बार ये यक्षप्रश्न
अब छेद हृदय को जाते है…
इतने निर्दयी, इतने पापी
कैसे इंसान कहते है….

संत समाज की गलियों में
जब यूँ अंधियारा फैलेगा
हे ईश्वर मेरे तुम्ही कहो
कौन नाम तुम्हारा फिर लेगा
क्यूँ जीवित है वो पापी सारे
क्यूँ सजा नही वो पाते है….
इतने निर्दयी, इतने पापी
कैसे इंसान कहाते है….

दिवंगत संत समाज को मेरी अश्रुपूरित श्रद्धाजंलि….💐💐

परिचय :- डॉ. अर्पणा शर्मा
निवासी : महेश विहार, उज्जैन मध्यप्रदेश
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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