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परम पिता ने कुंभा बनाया

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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परम पिता ने कुंभा बनाया,
जो चाहें जो इस में भर लें।
परम पिता की करें वंदना,
भवसागर के पार उतर लें।।

हम कतरे हैं धर्म हमारा,
सागर में मिलना ही तो है।
इससे पहले तन मन माँजें,
पिया मिलन को बनें संवर लें।।

कितना सुखद बनाया है तन,
खुशियों की खुशबू डाली है।
जान लुटा दें कुंभकार पर,
शिल्पकार पे दिल से मर लें।।

मनका अश्व नियंत्रित करने,
बुद्धि की चाबुक भी दी है।
मंजिल तक की बाधाओं को,
अपने बुद्धि बल से हर लें।।

परमपिता का घर अपना दिल,
झांको अंदर मिल जाएगा।
नहीं जरूरत उसे तलाशे,
घर बैठें, सच जान अगर लें।।

करना उसको हम कठपुतली,
मगर प्राण वाले हैं भाई।
प्राण उसी के उसको सौपें,
हर-हर है तो क्यों डर वरलें।।

ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्रहम,
कैसे हैं लासानी बंदे।
इसे समझ लें, इसे जान लें,
फिर “अनंत” जो चाहें करलें।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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