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मेरी आस्था

अर्चना अनुपम
जबलपुर मध्यप्रदेश

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मूर्ति पूजा की आलोचना के प्रतिउत्तर स्वरुप प्रथम प्रयास

बिखर जाते हैं बनाने हमारा वजूद
खुद चोट खाकर।
रौंदे गए होकर मिट्टी
अपनी रौनक गंवाकर।।

जिससे बनी ये सारी कायनात है
कीमती हर पत्थर निर्भर जिसपर
सिर्फ इंसान नहीँ भगवान् है।।

अगर गलत है इसे पूजना तो
सिर्फ इतना बता मेरे दोस्त
बिन मिट्टी और पत्थर के
वजूद है किसका??

किसमें है दम जो मूल
चुका दे ब्याज सहित इसका??
जर्रा जर्रा इसी ने बनाया है।
तुझे दी ये अनमोल काया है।।

गर चुका नहीँ सकते मूल ;
तो नहीँ कभी भूलेंगे
फक्र से ताउम्र
पत्थर की मूरत पूजेंगे।।

अपनी आलोचना का डर
किसी और को दिखाना ।
आइन्दा मेरी आस्था पर
अंगुली नहीँ उठाना।।

तुम करोगे निंदा हमारी थोथे बन बैठे बड़े,
ना वेद पढ़े ना शास्त्र पढ़े
नित बने आलोचक ही मनगढे।
ना नीति रची ना गीति वची
वैचित्र कुंठाजित मूढ़मढें।।

केवल कर्मों का नाम जहाँ
नहीं भेद का कोई स्थान वहाँ
उस सामधर्म को कोस रहे
जो स्वयं शवों में प्राण गहे।

जहाँ नियमों का संधान है
मानवता का गुणगान है
चतु वर्ण भी कर्म प्रधान है
सत्स्वयं शास्वत विधान है।

परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम
साहित्यिक उपनाम – अर्चना अनुपम
जन्म – २१/१०/१९८७
मूल निवासी – जिला कटनी, मध्य प्रदेश
वर्तमान निवास – जबलपुर मध्यप्रदेश
पद – स.उ.नि.(अ),
पदस्थ – पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश
शिक्षा – समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर
सम्मान – जे.एम.डी. पब्लिकेशन द्वारा काव्य स्मृति सम्मान, विश्व हिन्दी लेखिका मंच द्वारा नारी चेतना की आवाज, श्रेष्ठ कवियित्री सम्मान, लक्ष्मी बाई मेमोरियल अवार्ड, एक्सीलेंट लेडी अवार्ड, विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा – अटल काव्य स्मृति सम्मान, शहीद रत्न सम्मान, मोमसप्रेस्सो हिन्दी लेखक सम्मान २०१९..
विधा – गद्य पद्य दोनों..
भाषा – संस्कृत, हिन्दी भाषा की बुन्देली, बघेली, बृज, अवधि, भोजपुरी में समस्त रस-छंद अलंकार, नज़्म एवं ग़ज़ल हेतु उर्दू फ़ारसी भाषा के शब्द संयोजन
विशेष – स्वरचित रचना विचारों हेतु विभाग उत्तरदायी नहीँ है.. इनका संबंध स्वउपजित एवं व्यक्तिगत है


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