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मेरा वजूद

दीपमाला पांडेय
खंडवा (मध्य प्रदेश)

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सोचती हूं ऐसा वजूद से
अनोखा रिश्ता है मेरा
आकलन कितना भी कर लूं
मां अंत में चेहरा दिखता तेरा….
आज उम्र के उस पड़ाव में हूं
जिस में आकर चाह कर भी
मैं रुक ना सकी
तेरे सिवा दर्द मेरा
कोई आंख पढ़ ना सकी….
जीवन रूपी समंदर में
हर कोई मजे से डूब रहा
अपने वजूद को
अनंत गहराइयों में ढूंढ रहा….
तूने ही तो स्वाभिमान से जीना सिखाया
अपने वजूद को पाना सिखाया…
तो क्यों किसी के सहारे जिऊं
लाचारी बेबसी का घूंट पीऊ
अब मौन क्यो रहूं
अपने अधिकारों के लिए लड़ूं….
क्योंकि आज भी अगर
अपना वजूद ढूंढने निकल जाऊं
तो खो जाऊंगी
दुनिया की भीड़ में….
और ताउम्र जूझती रह जाऊंगी
अपने ही वजूद की तलाश में…

परिचय :- दीपमाला पांडेय
निवासी : खंडवा मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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