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मेरे शैक्षिक नवाचार एवं उनके प्रभाव

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रचयिता : विनोद वर्मा “आज़ाद”

हमारे राज्य की मानक भाषा हिंदी है। यद्धपि प्रदेश में मालवी, निमाड़ी, बघेली, बुंदेली भीली आदि कई क्षेत्रीय व स्थानीय भाषाएं व बोलियां है।जो समूचे प्रदेश में बोली जाती है और वो समाज की संपर्क भाषा बन गई है। ये सभी स्थानीय भाषाएं जहाँ हिंदी से प्रभावित है वही हिंदी भाषा भी इन भाषाओं, बोलियों के रस-रूप और उसकी सुगंध ग्रहण करके अपने को समृध्द बनाती है। ठीक इन बोलियों के अनुसार ही हम शैक्षिक नवाचार को ले सकते है। नवाचार भी ऐसा हो जो अनुकरणीय हो।
सम्पूर्ण प्रदेश ही नही देश में भी खेलकूद गतिविधियां एक जैसी होने लगी है। यथा-कबड्डी, खो-खो, क्रिकेट, दौड़, स्लो सायकल रेस, लम्बी कूद……आदि। ये खेल सम्पूर्ण राष्ट्र में एक साथ प्रारम्भ नही हुए, बल्कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में काफी समय लगा, देशी खेल के साथ विदेशी खेल क्रिकेट विदेशी धरती से आया जबकि अन्य दौड़ स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार। अब अधिकांश जगह एक साथ ये स्पर्धाएं होती है।
सांस्कृतिक आयोजनों में प्रदेश में गुजरात से गरबा आया तो शिवाजी की भूमि महाराष्ट्र से गणेशोत्सव, कविवर रविंद्रनाथ टैगोर की धरा से मां कालिका की उपासना। जो अब सम्पूर्ण भारत मे फैल गई है। फैंसी ड्रेस एक अन्य रूप में प्रारम्भ होती है।
साहित्य की पृष्ठभूमि में झांककर देखें तो वाद-विवाद, भाषण, गोष्ठियां ज्ञान विस्तार के लिए प्रमुख विधा होकर विश्व धरोहर के रूप में प्रचलित हो गई है।
शासकीय विद्यालयों की दुर्दशा आज हमें देखने को मिल रही है वही गुरु परम्परा का भी तिरस्कार देखने को मिल रहा है। विश्वगुरु के रूप में ख्यात भारत देश मे शिक्षक सम्मान में कमी आई है, यही कारण है कि अशासकीय शिक्षण संस्थान गाजर घास की तरह उग आए है, वहां नवाचार का प्रभाव ऐसा पड़ा कि शासकीय संस्थाएं छात्रों को तरसने लगी, इसमें कुछ नीतियां नुकसानदायक रही। इसे अन्यथा न लेकर सकारात्मक लिया जाना चाहिये – छात्र फेल न हो इसलिए ५वीं, ८वीं बोर्ड परीक्षा समाप्त। परिणाम शिक्षकीय गतिविधियां ठप्प, प्रयोगों की आवश्यकता ही नही। लापरवाही के आलम में उच्चमुक़ाम का भी ह्रास होने लगा। एसी स्थिति में कहीं शासकीय संस्थान अशासकीय हाथों में न चले जाय !! इसी सोच के साथ एक संस्थान का कायाकल्प करने के लिए इन पंक्तियों के साथ ठान लिया–

“कि हार-जीत हमारी सोच पर निर्भर करती है,
मान लिया तो हार औऱ ठान लिया तो जीत।”

शासकीय प्राथमिक विद्यालय क्रमांक १ देपालपुर के प्रभारी प्रधानपाठक ने चार्ज लिया, दो कमरों की छत बैठकर नागराज ने अपना घर बना लिया था, अपने पूर्व विध्यार्थियों को साथ लेकर अपने स्तर पर जाली डलवाकर छत भरवाई, जनसहयोग से १६ समाजसेवी, देशभक्तों के छायाचित्र प्राप्तकर उन्हें दिवारों पर लगवाकर शेरों-शायरी, मुक्तक लिखवाकर कार्यालय व अन्य कक्ष तैयार करवाये। शासकीय मद से नलकूप खनन करवाकर बाउंड्रीवाल (चारदिवारी) की शुरूआत की। बगीचा निर्माण हेतु कम कीमत पर अन्य विद्यार्थी से ईंट प्राप्त की। सोख्ता गड्ढा के साथ जैविक खाद निर्माण की प्रक्रिया भी प्रारम्भ की। जनसहयोग से झूला प्राप्त किया। एक “विनोद चक्र” का निर्माण किया जिसमें 24 तिलीयों वाले “अशोक चक्र को आधार बनाकर ७-७ रंगों बेंजानिहपिनाला हिंदी व अंग्रेजी में विबग्योर चक्र के ३ हिस्से तैयार करवाये। शेष ३ सफेद रंगों से रंगकर जोड़, घटाव व गुणा की विधि बताई गई। इस नवाचारी चक्र में हिंदी, अंग्रेजी के स्वर-व्यंजन बताने के साथ सम-विषम, पहाड़े के साथ रोमन लिपि में १ से १० तक कि गिनति प्रदर्शित की गई। इकाई, दहाई, सैकड़ा से लेकर एक लाख तक कि संख्या भी दिखलाई गई। रेखा गणित के लिए परिधि, व्यास, व्यास, सरल कोण, अधिक कोण, समकोण, न्यूनकोंण आदि भी प्रदर्शित कर इस नवाचारी “विनोदचक्र” पर रिंग, बॉल, लँगड़ी के माध्यम से खेल-खेल में सीखने का अभिनव चक्र बनाया गया।
क्षेत्र में पशु हाट लगता है, इसलिए प्रभारी ने व्यवस्थित तरीके से जालीदार चार दिवारी, बगीचा, झूला, खेल का सामान प्राप्त किया। पुनः जनसहयोग से चकरी व फिसलपट्टी की भी व्यवस्था की गई। स्कूल झोला, शैक्षणिक सामग्री भी छात्रों को प्रदान की गई। बगीचे में औषधीय पौधे लगवाए जाकर छात्रों को उसका ज्ञान भी करवाया गया। त्रिवेणी, पीपल, निम, अनजीर, मरवा, पोदीना, सौफ, केल, ग्वारपाटा, विद्यालय समय (बिच्छू बेल) वज्रदंती आदि का ज्ञान बच्चों को हो गया। इन नवाचारों का परिणाम छात्र संख्या ४० से ९७ हो गई।
इतना कुछ करने के बाद खण्डस्रोत समन्वयक और जिला परियोजना समन्वयक द्वारा इस नवाचारी विद्यालय का डेमो विकासखण्ड स्तर पर दिया जाकर “विनोद चक्र” युट्यूब के साथ अनेकों विद्यालयों में सतत चल रहा है।
इस प्रकार के नवाचार के साथ मिट्टी के खिलौने, चित्रकला,बेकार सामग्री से शैक्षिक सामग्री बनाकर बच्चों के साथ मित्रवत भाव से ऐसे नवाचार निश्चित ही मिल का पत्थर साबित होंगे। प्रतिस्पर्धा के इस युग मे हमे विद्यालयों के बीच इस प्रकार के नवाचारों की प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाना चाहिये बिना भेदभाव के, और वह भी गांवों से ईमानदारी से प्रारम्भ किया जाना चाहिये। निश्चित रूप से शिक्षा जगत के लिए नवाचार प्रभावी साबित होगा।
इन पंक्तियों के साथ इस आलेख को समाप्त करने जा रहा हूँ—-

दिल का साज बदल दो, गम की हर आवाज़ बदल दो,
भीगी पलकें ये कहती है,
क्यूँ अंजाम का सपना देखो। बेहतर है राह बदल दो,
पीढ़ी पढ़ लेगी इतिहास, थोड़े से अल्फ़ाज़ बदल दो ….

 

लेखक परिचय :- 
नाम – विनोद वर्मा
सहायक शिक्षक (शासकीय)
एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी. अगस्त 2019 तक हो जाएगी।
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृ तिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – अम्बेडकर अवार्ड, साहित्य लेखन तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली
२ – रजक मशाल पत्रिका, परिषद, भोपाल
३ – राज्य शिक्षा केन्द्र,श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
४ – पत्रिका समाचार पत्र उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान (एक्सीलेंस अवार्ड)
५ – जिला पंचायत द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
६ – जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान
७ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सम्मान
८ – भारत स्काउट गाइड संघ जिला एवं संभागीय अवार्ड
९ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मानित
१० – लायंस क्लब द्वारा सम्मानित
११ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान
१२ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
१३ – दैनिक विनय उजाला राज्य स्तरीय सम्मान
१४ – राज्य कर्मचारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१५ – म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी अधिकारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१६ – प्रशासन द्वारा १५ अगस्त को सम्मान

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