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मेरे बाबूजी

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रचयिता : कुमुद दुबे

मुझे अपने बाबूजी पर
घमंड करना आता है
उन जैसा पिता जहाँ में
नजर नहीं आता है
जब मैं छोटी थी
पर, छः बहनों में बड़ी थी
फिर भी थी मैं उनकी लाड़ली
सब याद है मुझे,

उनका साईकिल पर बिठा
बाजार ले जाना
अपने साथ बिठा
दूध रोटी खिलाना
लड़ियाते हुए खाने से
थाली में पानी ढुल जाना
फिर मिठी-सी डाँट पडना
सब याद है मुझे,

सहैली के घर पढने जाना
देर रात तक घर न लौटना
उनका चिंता करना
फिर चुपके-चुपके लेने आना,
सब याद है मुझे,

स्कूल की
खेल प्रतियोगिता में भाग लेना
बाबूजी का उत्साहवर्धन करना
सब याद है मुझे,

परीक्षा के दिनों में
ऑफिस से छुट्टी लेकर आना
परीक्षा हाॅल के सामने
ग्लुकोज, संतरे, अंगूर लिये बैठना
उनका इस तरह इंतजार करना
सब याद है मुझे,

शनिवार-रविवार की छुट्टी में
किराना लेने शहर जाना
देर होने पर चाचाजी के घर ठहरना
फिर दूसरे दिन लौटना
हमारा बाॅट जोहना
माँ से बार-बार प्रश्न करना कि
बाबूजी कब लौटेंगे?
सब याद है मुझे,

साईकिल पर थैला टांगे
दूर किसी ओर को देख
बाबूजी समझकर
सड़क पर दौड़ जाना
फिर निराश हो लौट आना
सब याद है मुझे,

परिवार बड़ा
वेतन कम
फिर भी सीजन की चीजें
मूंगफली चने, खजूर,
सिंगाडे, सेव हमारे लिये
लाने की सूची में लिखना
सब याद है मुझे,

बाबूजी का बेटियों के प्रति
प्यार व दुलार कभी कम न हुआ
आज भी जब घर जाती हूं
वही प्यार का अहसास पाती हूँ
७५ की उम्र में भी
उनके हाथ से बने
आटे के हलुवे,
सिल पर बटी हरी चटनी की
फरमाईश कर बैठती हूँ,

कहीं रास्ता न भटक जाऊँ,
साईकिल की जगह
अब लूना पर बिठा
ससुराल छोड़ने जाना
और साईकिल पर बैठे-बैठे
मेरे मन का यूँ भटकना
और बचपन में खो जाना
सब याद है मुझे,

अपने बाबूजी पर
घमंड करते-करते
अपने पर घमंड कर बैठना कि
इस धरती पर मेरे बाबूजी जैसा
कोई और नहीं
सब याद है मुझे..!!

लेखिका परिचय :- कुमुद के.सी.दुबे
जन्म- ९ अगस्त १९५८ – जबलपुर
शिक्षा- स्नातक
सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची।
इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका।
विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)।

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