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माँ की वीरता

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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बच्चे की एक चोट देख कर
माँ का कलेजा मुंह को आये
माँ की वीरता से ही कोई
बेटा सीमा पर जाए
जहाँ बच्चे को धूप से बचाने
ओदनी बन जाती है माँ
वहाँ तपते रेतीले टीलों पर
करते रहते गश्तिया जवाँ
बर्फीली घाटी में जब जब
शीत लहर चलती है
माँ की रजाई और दुशाले की
वो गर्माहट कहाँ मिलती हैं
स्कूल से आने में देरी
वो पांच मिनट का होता है
जाबांजो के माओ के जीवन में
अनवरत प्रतीक्षा होता है
उन बहनों की हम बात करे
जिनका कोई भाई नही
पर भाई होकर भी बहनों की
राखी को नसीब कलाई नही
छाती चौड़ी हो जाती है जब
बेटा सेना में जाता है
गर शहीद हो जाए तो फिर
नाम अमर हो जाता है
सेना के लाखो जवानों में भी
किस्मत की ही चलती है
वो शहीद हो जाता है
जिसे भारत माता चुनती है
तुम धन्य हो तुम महान हो
तुम पर हमको भी नाज है
तुम जैसों के बलबुते से ही
भारत में ‘सुकून’ आज है

परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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