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ऑनलाइन मदर्स डे

शरद सिंह “शरद”
लखनऊ

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तीन दिन से ठीक जो को मां खड़ी नहीं हो पा रही थी आज वह जल्दी-जल्दी खाना बनाने में लगी थी।
आज काफी लंबे समय के बाद उसका बेटा जो आ रहा था, अब इतने समय के बाद जब आ रहा है तो वह बिस्तर पर कैसे लेटी रहती बेटा क्या सोचेगा माॅ को बेटे की कोई चिंता नहीं है…. अपनी ही तबीयत लेकर बैठी है, यही ना….नहीं वह कैसे लेटी रह सकती है उसके लिए खाना बनाना है भूखा होगा, बड़बड़ाती हुई माॅ खाना बना रही थी, वह अपनी पूरी शक्ति अंदर एकत्रित कर के काम में लगी थी। दाल चावल सब्जी रायता सलाद सब तैयार हो गया आटा भी गूंध लिया बस अब रोटी बनानी है… जब आयेगा गरम गरम रोटी बना देंगे वह खुद से ही बात कर रही थी।
वह बेटे की प्रतीक्षा करने लगी कभी बाहर आती कभी अंदर जाती वह अंदर जा रही थी कि पड़ोस की राधा पूछ बैठी अब कैसी तबीयत है बुखार कम हुआ?
नहीं कम तो नहीं हुआ है हो जाएगा…
तो आराम करो भाग दौड़ में क्यों लगी हो कोई आ रहा है क्या?
हां आज बेटा आ रहा है उसके लिए खाना बना रही थी आता ही होगा इतने में टैक्सी आकर रूकी माॅ खुश हो गई बेटा उतरा सामान निकाला और टैक्सी वाले को पैसे देकर विदा कर दिया फिर पीछे मुड़ा माॅ के एक पैर को हाथ लगाया और मोबाइल कान से लगाए बात करता हुआ अंदर आ गया उसके पीछे-पीछे माॅ आ गई वह कुछ कहने को हुई तब तक वह कमरे में चला गया उसकी धीमी आवाज से माॅ ने अंदाजा लगा लिया था कि वह गर्ल फ्रेंड से बात कर रहा था।
आधा घंटे से अधिक हो गया माॅ ने इस बीच दो तीन बार कहा खाना बन गया है खा लो ठंडा हो जाएगा वह नहीं आया लगभग ४५ मिनट के बाद वह कमरे से बाहर आया और बाथरूम में चला गया माॅ ने रोटी बनानी शुरू कर दी अब तो वह आकर खाना खाएगा ही उसने सोचा। जैसे ही वह बाथरूम से निकला मोबाइल फिर बज उठा उसने मोबाइल उठाया और बात करने लगा।
माॅ बोली खाना खा लो बाद मे फिर बात कर लेना बेटा ने घूरती आंखो से माॅ की ओर देखा माॅ प्लेट में उसे खाना लगा रही थी उसने उसको घूरते हुए नहीं देख पाया। वह उसकी बात सुन रही थी वह किसी से कह रहा था हां…हां वह पोस्ट डाली थी बहुत सारे लाइक और कमेंट्स आए है इतने कभी मदर्स डे पर नहीं आए जितने आज आए गूगल से खोज करके निकाली थी यह पोस्ट बहुत समय लगाया था
तीन चार दिन पहले “उसने” बताया था मदर्स डे आ रहा है
हां… हां उसकी माॅ को तो गिफ्ट भेज दिया था… मिल भी गया… अभी उसका फोन आया था कह रही थी माॅ को बहुत अच्छा लगा गिफ्ट
अच्छा हुआ उसने बता दिया ध्यान नहीं रहता तो वह नाराज हो जाती।
हां… हां सभी सोशल साइट्स पर डाला था बहुत कमेंट आए हैं तुम देखना लगभग १५ मिनिट के बाद उसने कान से फोन हटाया फिर बोला क्या है माॅ तुम देख नहीं रही थी मै बात कर रहा हूं।
खाना खा लो… खाना खा लो… खाना का क्या है कहीं भाग जा रहा है कहते हुए उसने प्लेट उठाई और कमरे में चला गया और माॅ सुबह… से बनाए खाना को रखकर बिस्तर पर जा गिरी उसका ज्वर बहुत तेज हो गया था वह सोच रही थी आज मदर्स डे है किन्तु … सोशल साइट्स पर….

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परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने “मेरी स्मृतियां” नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है।


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