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मातृभाषा का प्रसार

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रचयिता : मनोरमा जोशी

नये जगत की नयी कल्पना,
को आऔ साकार बनाये,
हम मातृभाषा को ही अपनाऐ।
हद्रय हृदय मे दीप जलें जो
स्वः भाषा का ज्ञानभाव जगादें
सुन्दर मनहर स्वप्न सजादें।
सबको दे विशवास लक्ष्य का
और सतत चलने का साहस।
ज्योति ऐसी भरे जीवन में
कभी न आऐं गहन अमावस
फूट पड़े आत्मा का झरना।
मातृभाषा का भाव जगाऐं।
चलो नया संसार बसाऐं।
जिसमें पनपे नेतिकता,
वह नया भवन निर्माण करेगें।
साहस बल पुरुषार्थ जुटा
तन की ईटों से नींव भरेगें
रच डाले चिर नूतन इतिहास
क्रया का संबल लेकर,
एक नया संघर्ष सृजन का,
होगा अब प्राणों में प्रतिपल।
मिटते मिटते भी अपने कर्मो से
भाषा का मान बढ़ाये।
हम मातृभाषा ही अपनाऐं।
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लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है।
शिक्षा – स्नातकोत्तर और संगीत है।
कार्यक्षेत्र – सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उपलब्धि संगीत शिक्षक, मालवी नाटक में अभिनय और समाजसेवा करना है। आपके लेखन का उद्देश्य-हिंदी का प्रचार-प्रसार और जन कल्याण है। कार्यक्षेत्र इंदौर शहर है। आप सामाजिक क्षेत्र में विविध गतिविधियों में सक्रिय रहती हैं। एक काव्य संग्रह में आपकी रचना प्रकाशित हुई है।

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