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मां तारा

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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मां तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार-
मैं अकिंचन एक भिखारी मांगता हूं तेरी प्यार!
दश “महाविद्याओं”में तू अद्वितीय तू ही पालनहार-
जो कुछ मैं हूं हे माते तेरी ही कृपा कटाक्ष!
मैं अबोध तेरी पुत्र तेरी बिन मैं हूं अनाथ-
माँ तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार!
मैं भटका हूं इस निशा रात्रि में धधक रही चिता मसान-
मध्य रात्रि में भयाक्रांत चारों तरफ है सुनसान!
द्वारिका नदी में वर्षा से हो रही है तीव्र प्रवाह-
माँँ तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार!
मैं अकिंचन एक भिखारी मांगता हूं तेरी प्यार-
बीत चुकी है कई वर्ष न मिट सकी है प्यास!
मां तारा तेरी मिलन की चाह में भटक रहा महाशमसान-
वरद अभय मुद्रा में मां तू अडिग हो तू ही पालनहार!
महाशमसान में साधक गण सभी कर रहे करुण पुकार-
इस नश्वर संसार में मां सुनो मेरी करुण पुकार-
श्रृंगाल -शिवा, भैरवी ,योगिनी की आ रही सुदुर आवाज!
महा शमशान में साधक गण सभी कर रहे करुण पुकार-
जय मां तारा जय मां तारा की ध्वनि हो रही है गुंजायमान!
तू मुझे निर्भय कर मां तू दे मुझे अभय वरदान-
संघार कर तू शत्रुओं का कर्म कृपा कटाक्ष!
माँँ तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार!

परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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