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मातृशक्ति

प्रियंका पाराशर
भीलवाडा (राजस्थान)

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आपसी सामंजस्यपूर्ण वाद-विवाद
कुछ यूँ प्रारंभ हुआ पति-पत्नी का संवाद
कैसे कर लेती हो ये कमाल
पति ने किया पत्नी से सवाल
नाहक क्रोध करता, बेवजह सुनाता
डाँटता हूँ अकारथ
मैं पत्नी भक्ति से विरक्त
फिर भी तुम बनती पति भक्त
स्वयं भारतीय संस्कृति के वेद का विद्यार्थी
परंतु आध्यात्मिक शक्ति में तुम महारथी
करता हूँ वेद का केवल अध्ययन
पर जीवन में तुम करती उसका अक्षरतः पालन
सुनो मेरे हमजोली
पत्नी मुस्कुराकर बोली
माँ की थोडी़ सेवा कर पुत्र कहलाए मातृभक्त
पर दिन-रात पुत्र की देखभाल कर
माँ नहीं कहलाती पुत्र भक्त
पति का कौतूहलपूर्ण प्रश्न
प्रारंभ हुआ जब जीवन
तब स्त्री पुरूष थे एक समान
फिर स्त्री से पुरुष कैसे महान
पत्नी ने किया प्रतिवाद
दो वस्तु से दुनिया निर्मित
वह है ऊर्जा और पदार्थ
पुरूष जैसे ऊर्जा तो स्त्री जैसे पदार्थ
विकसित होता पदार्थ करके ऊर्जा का आधान
ऊर्जा नही करती पदार्थ का आधान
जैसे स्त्री करती पुरूष का आधान
शक्तिस्वरूप हो संतान के लिए प्रथम पूज्या कहलाती
आधान पश्चात ऊर्जा और पदार्थ दोनो की स्वामिनी बन जाती
तब तो तुम हो मेरी पूज्य, पति ने दिया तर्क
तुम ऊर्जा, पदार्थ दोनो की स्वामिनी
मैं मात्र अंश ऊर्जा का, ज्ञात हुआ फर्क
बरतता हूँ जब मैं सख्ती
तब क्यों नहीं प्रयोग करती यह शक्ति
प्रतिक्रिया स्वरूप पत्नी रखती है बात
आई जीवन उत्पन्न करने की क्षमता
संसर्ग करने से जिसके साथ
प्रदान किया जिसने ईश्वर से भी उच्च पद, बना दिया माता
नहीं कर सकती शक्ति प्रयोग, कैसा विद्रोह पति के साथ
करते हुए निरूत्तर, चिढ़ाकर कहा जनाब
शक्ति प्रयोग करने की मुझे क्या आवश्यकता
लव कुश तैयार कर बन जाऊँगी जैसे माता सीता
कर लेंगे वही आपसे मेरा हिसाब-किताब
पति ने उच्चारण की बस यही पंक्ति
प्रेम और मर्यादा में बाँधी जिसने समस्त सृष्टि
सहस्रो नमन हो, हे मातृशक्ति हे मातृशक्ति

परिचय :- प्रियंका पाराशर
शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी)
पिता : राजेन्द्र पाराशर
पति : पंकज पाराशर
निवासी : भीलवाडा (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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