प्रेम नारायण मेहरोत्रा
जानकीपुरम (लखनऊ)
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जब प्रभु राम १४ वर्ष के बनवास के बाद वापस आये और माँ कौशल्या से मिलने गए तो अत्यन्त दुखी होने के कारण उन्होंने अपनी कोख को ही अभागिन कह देखे प्रभु राम कितनी शालीनता से उनकी पीड़ा को हर लिया और माँ कैकेयी, हनुमान जी, भरत जी और लक्ष्मण जी का मान बढ़ाया।
माँ कौशल्या ने राम जी से पूछा
राम क्यों दुःख भोगने को इस अभागिन कोख आया,
राज्य छुटा, वन गया, चौदह वर्ष तक कष्ट पाया।
राम जी ने मुस्करा कर उत्तर दिया
हूँ परम सौभग्यशाली मातु तेरी कोख पाया,
शीश धर आज्ञा पिता की, मैंने जग में मान पाया।
जग को कुछ आदर्श देने आया है माँ राम तेरा,
तप के कंचन सा निखरना, मातु था उद्देश्य मेरा।
कैकेयी माता ने अपजस सह मुझे कंचन बनाया।
हूँ परम सौभग्यशाली…
यदि न जाता वन तो हनुमत और लेखन सेवा न पाते,
त्याग की प्रतिमूर्ति मेरे भरत भैया बन न पाते।
में बंधा था पितु वचन से, भरत ने उसको निभाया।
हूँ परम सौभग्यशाली…
सन्त वचनों को निभाना, माँ मेरी प्रतिबध्दता थी,
अहल्या को मुक्तकर, शबरी दरश की लालसा थी।
शबरी के हांथों माता ‘प्रेम’ सिंचित बेर खाया।
हूँ परम सौभग्यशाली…
मैं न जाता वन, तो रावण जानकी कैसे चुराता,
मार्ग भटका ज्ञानी रावण, कैसे जग से मुक्ति पाता।
वन के चौदह वर्ष मैंने सन्तों का सानिध्य पाया।
हूँ परम सौभग्यशाली…
परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा
निवास : जानकीपुरम (लखनऊ)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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