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मां और पत्नी

सुखप्रीत सिंह “सुखी”
शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)

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ना कभी लिखा ना
कभी लिख पाया है
ना कभी लिखा ना
कभी लिख पाया है

तुम्हें मां से ज्यादा
तो नहीं पर
मां से कम भी
नहीं पाया है

ये बात सच है कि मां ने
मेरी जिंदगी सवारी थी
पर यह भी सच है कि
तूने मेरी दुनिया सवारी है

मुझे मां भी प्यारी थी
मुझे तू भी प्यारी है
हां मां ने मुझे
चलना सिखाया था

हां मां ने मुझे
चलना सिखाया था
और तूने साथ
चलना सिखाया है

सर पे मेरे तब
मां का साया था
अब साथ मेरे
तेरा साया है

ना कभी लिखा ना
कभी पाया है
मां मेरे खाने, पीने,
पहनने का
ख्याल रखती थी

और तू भी मेरे खाने पीने
और सोने जागने का
ख्याल रखती है
मां भी मेरी देर रात
तक राह तकती थी

तू भी मेरी देर रात
तक राह तकती है
मां ने मेरा परिचय
मेरे पिता से करवाया था

तूने मुझे पिता होने
का गर्व कराया है

और मां से ही
शायद मैं था
तुझसे ही जिंदा
मेरा साया है

ना कभी लिखा ना
कभी लिख पाया है
ना कभी लिखा ना
कभी लिख पाया है

परिचय :-  सुखप्रीत सिंह “सुखी”
निवासी : शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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