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मां

संध्या नेमा
बालाघाट (मध्य प्रदेश)
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मां की शुरुवात कहां से करु
समझ ही नहीं आ रहा मुझे मां
क्यों वो तो मुझे दुनिया में
लेने से पहले ही जानती है…

सबको लेकर चलना पड़ता है।
इस जीवन के सफर में,
पापा, दादी, दादा, बुआ, बड़ी मां,
बड़े पापा बेटा,
बेटी सबकी सुनती है। मां

कभी गलती को
छुपाती तो कभी
बिना गलती के ही
चिल्लाती। मां
कभी दोस्त बन जाती है तो
कभी बहन बन जाती है मां…

एक दिन भी
अपने बच्चों को
न देखे तो बैचेन
हो जाती है तू मां
इतनी चिंता क्यों करती है
तू अपने बच्चों की तू मां
खुद के लिए भी
तो समय ले मां
खुद की इच्छा का भी तो
कभी कुछ बना ले मां…

तू मां बस अपने
बच्चों के लिए जीती है
खुद के लिए भी
एक बार जी ले। मां
तेरे भी तो होगें कुछ
सपने मां एक बार बता दें मां…

एक दिन तेरी बेटी भी
चले जायेगी मां
जैसे तू एक घर छोड़ कर
दूसरे घर आई मां
मुझे भी ऐसे ही
जाना पड़ेगा क्या। मां
ऐसे ही मेरे
सपने अधूरे रहें क्या। मां…

परिचय : संध्या नेमा
निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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