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मिजाज मौसम का बदल रहा है

खुमान सिंह भाट
रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़)

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देख यह कैसा है छाया,
विलक्षण परिवर्तन लिए मौसम है आया।

बर्फबारी हो रही है भुकंप आ रहा है,
समुचे भू- पटल पर विनाश का काला
बादल छा रहा है।

दृश्य देख यह ख्याल आ रहा है,
मिजाज मौसम का बदल रहा है।

वध्वंस होकर प्रकृति,
अपनी स्वरुप दिखलाया।

कड़ाके की गर्मी में,
शीत के कहर है छाया।

वृक्ष के उपकार को,
अंधा मानव समझ न पाया।

देव तुल्य पीपल का भी,
कुल्हाड़ी से काट गिराया।

दिखावा के दौर में,
मनी प्लांट के पौधे घर में लगाए।

देख तेरी मुर्खता,
तुलसी माता लज्जा से सिर अपनी झुकाए।

निशा काल में शीतल वायु न दे पाए,
वह ये ! मानव तुने कैसा पथ अपनाया?

प्रकृति का श्रृंगार मिटाकर,
नव निर्मित उद्योग कल कारखाना है लगाए।

देख तेरे इन हरकतों से,
मिजाज मौसम का बदल रहा है।

मानव तुम कितनी प्रगति कर भी,
सक्षम हो जाओ फिर भी,
प्रकृति के समक्ष खुद पेश नहीं कर पाए
अंत में अपना सिर झुकाए।

गर समझदारी खुद में है तो,
छोड़ चार दिन की चांदनी।

वृक्षारोपण कर धरती का मान बढ़ाओ,
देश के तमाम मानवजन तक यह संदेश पहुंचाओ।

धरती कि शान हरियाली के नाम कर,
जीवन को सफल बनाओ।

 

परिचय :-  खुमान सिंह भाट
निवासी : रमतरा, बालोद, छत्तीसगढ़


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