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क्षणिक आवेश

श्रीमती विभा पांडेय
पुणे, (महाराष्ट्र)
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क्षणिक आवेश था वह,
मगर उस आवेश के कारण
वर्षों से बनाए रिश्ते टूट गए।
शब्द बाण से आहत हो
संबंधों के पंछी
घायल हो गए।
शायद बचें, शायद
न भी बच पाएँ।
क्यों लोग आ जाते हैं
क्षणिक आवेश के चक्कर में।
क्यों बोलते हैं ऐसे शब्द
चुन-चुन कर
जो छेद डाले मन।
क्या अहंकार रिश्तों से
अधिक ऊपर होता है?
शायद होता है।
तभी तो उनके तरकस में
इतने जहरीले तीर होते हैं।
और बखूबी वे उन्हें
चुन-चुन कर चलाते हैं।
शायद रिश्तों को
स्वाभाविक मृत्यु देना
उन्हें गँवारा नहीं,
वे उसे भी सड़ते-रिसते
तड़प-तड़प कर मरते
देखना चाहते हैं।
तभी तो चुन-चुन कर
आवेश में आकर
मारक शब्द बाण चलाते हैं।

परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड.
जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी
निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र)
विशेष : डी.ए.वी. में अध्यापन के साथ साथ साहित्यिक रचनाधर्मिता में संलग्न हैं ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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