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तेरी याद आई

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निधि मिश्रा
पाण्डेय खरेया गोपालगंज
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सूरज की लाली से पहले जगने वाली आंखों को,
जब तेज धूप ने जगाई तो तेरी याद आई।
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आंखे खुली सुबह में खुद को अकेली पाया,
चिड़ियों ने आवाज लगाई तो तेरी याद आई।
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फसल के मौसम में करती इंतजार सी मैं,
घिर के काली बदली छाई तो तेरी याद आई।
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सूखे खेत वाले किसान सी थी मैं,
रिमझिम बारिश आई तो तेरी याद आई।
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इलायची में वो खुशबू नहीं अद्रक में वो स्वाद नहीं,
एक लाचार सी जब चाय पी तो तेरी याद आई।
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तरस रहे थे मेरे कान बस सुनने को एक आवाज,
वो प्यारी सी आवाज नहीं आई तो तेरी याद आई।
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सूरज की लाली से पहले जगने वाली आंखों को,
जब तेज धूप ने जगाई तो तेरी याद आई।
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लेखक परिचय :- 

नाम:- निधि मिश्रा
पेशा : गृहणी
निवासी : पाण्डेय खरेया गोपालगंज (बिहार)

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