Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

तिरस्कार से आहत मन

विवेक रंजन ‘विवेक’
रीवा (म.प्र.)

********************

तिरस्कार से आहत मन तो,
कुंठा की हर चोट छिपाता।
पर मैं विचारों की नदी के,
पार जाकर लौट आता।

तब सदा अनुभूत शांति,

क्रोध की ज्वाला दबाती।
पछतावे के आंसुओं का,
बोझ मन पर लाद जाती।

नीरवता फिर रात ढले ही,

बात किया करती सांसों से।
सुनती है, कुछ भी न बोलती,
अंतर्मन रह रह कर टटोलती।

बुद्धि का अवरोध हटाकर

हौले हौले मन भीतर जाता।
पर चकराता देख नज़ारा,
बड़े मज़े में खुद को पाता।

द्वेष दम्भ के, अहंकार के,

सभी मुखौटे पड़े धरा पर।
लोभ, लालच के प्रपंच भी,
हैं खड़े सिर को नवा कर।

निर्मल शीतल नीर झील का,

मन पर ऐसा असर दिखाता।
ईर्ष्या, द्वेष सभी बह जाते,
छल प्रपंच भी नज़र न आता।

बुद्धि का अहम ही हमें सताता,

मतिभ्रम से मन को उलझाता।
कलुषित कुछ ना भीतर पाकर,
सब खेल समझ मन ऊपर आता।

बुद्धि का कोई उपक्रम अब,

जब भी मन में शोक जगाता।
मैं फिर विचारों की नदी
के पार जाकर लौट आता।

परिचय : विवेक रंजन “विवेक”
जन्म –१६ मई १९६३ जबलपुर
शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र
लेखन – १९७९ से अनवरत…. दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास “गुलमोहर की छाँव” प्रकाशित हुआ है।
सम्प्रति – सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं।
उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻  hindi rakshak manch 👈🏻 … राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे सदस्य बनाएं लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *