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मन का परिवेश

बबली राठौर
पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.)

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हमनें तो वक़्त से जाना और सीखा जीना
आँखों के अश्कों को कौन अपना समझता
कब कौन दुख में हमारे शामिल होता
ये मन का परिवेश है जो इन्सानियत को पढ़ता

यह जीवन तो और सुख अपनों से मिलता
पर कभी-कभी वो अपना भी पराया दिखाता
जब होतीं हैं मुश्किलों की घड़ियाँ जिन्दगी की
ये मन का परिवेश है जो उनके दिल को पढ़ता

जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं सब के लिए
कहीं धूप होती है जीवन में तो कभी छाँव लिए
और कठिन परीक्षा का दौर पास
जो कर लेता है इन्सां
ये मन का परिवेश है जो जिन्दगी के रंग को पढ़ता

ये दर्द, गम कब कहाँ किसे नहीं डसते हैं
जख्मों के घाव आदमी भरने की चेष्टा करते हैं
फिर भी नहीं वो पीर भूल पाते हैं हद की
ये मन का परिवेश है जो ढाए जुल्म को पढ़ता

परिचय :- बबली राठौर
निवासी – पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र.
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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