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रजस्वला

विवेक सावरीकर मृदुल
(कानपुर)

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रजस्वलाओं की सुबह
अब अलग नहीं होती
वे बोरा लिए कोने में
अस्पृश्य सी नहीं सोतीं

सुबह उठकर घर आपके
बर्तन मांजने आती है
या आपके छौने को
स्कूल छोड़ने जाती है
प्रयास पूरा करती है
ना प्रवेश करे पूजाघर में
दूर रहती है आरती,पूजन
और प्रसाद ग्रहण से

रास्ते के मंदिर के पास
पांव आदतन ठिठकते हैं
बस वो मौन प्रार्थना कर
दूर निकल जाती है ।।

मगर नहीं चाहती वो
कि कोई माने बताए
उसे शुचिता का
कि सिखाने लगे उसे
पाठ पवित्रता का
क्योंकि देवी है वो अगर
तो देवियां कभी नहीं
होती रजस्वला
रहती हैं सदा वत्सला।।

 

लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल
जन्म :१९६५ (कानपुर)
शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा
हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये,
उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन।
संप्रति : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक कुलसचिव।

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