अंजना झा
फरीदाबाद हरियाणा
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कालिका रणचंडी बन
तुम भी अब नरसंहार करो।
बहुत बन गई नाजुक तुम
अब न कोई श्रृंगार करो।।
उठो जागो ये कहना भी अब
नहीं मायने रखता है।
खप्पर और खडग लेकर
तुम भयमुक्त हुंकार भरो।।
नहीं कहुँगी कोमलांगी हो
तुम न हो सुंदरता की मूरत।
आत्मबल के संग बढ़
तुम वीरता का इतिहास रचो।।
शर्म हया के परदे से बहुत
झुका लिया पलकें अब।
घूरती उस हर नजर को
तुम अपने नजरों से भी बेधो।।
खुद की रक्षा के साथ
उस माँ के भय को भी समझो।
आत्मनिर्भर बनाकर जो
विदा करती कर्म पथ पर।।
सहमी सी रहती वो सुरक्षित
तेरे घर वापस आने तक।
अब कर रही हर माँ आह्वान
अपनी हर इक बेटी से।।
आत्मरक्षा के लिए बेटी
परंपरा की बेडियो को तोड़ो।
बहुत बन गई नाजुक तुम
अब न कोई श्रृंगार करो।।
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परिचय :- नाम : अंजना झा
माता : श्रीमती फूल झा
पिता : डाक्टर बद्री नारायण झा
जन्म तिथि : ६ अगस्त १९६९
जन्म स्थान : पटना
अंजना झा मूलतः बिहार की निवासी हैं। आपने मनोविज्ञान में एम.ए. किया है। पूर्व में आर्मी पब्लिक स्कूल में शिक्षिका रही हैं। आप कुछ समय आनलाइन पत्रिका साहित्य लाइव में संपादिका पद पर भी रह चुकी हैं। आपकी रुचि लघुकथा और काव्य लेखन में है। आपकी रचनाएँ हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) व अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं।
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