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शहादत

रचयिता : संगीता केस्वानी

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शहादत

हूं तिरंगे में लिपटा हुआ,
मां की गोद में मीठी नींद सोया हुआ,
गम जदा मां को बादल ने सहलाया है,
पश्मिनी याख – बस्ता मर्म आंचल मुझपे ओडाया है,
लहू बहा अंगारा जो देहकाया है,
मस्त पवन ने खूब उसे बड़काया है,
ना शोक मना, ना अश्क बहा,
गाज बन गिरेगा वो,
अभी विशाल तेरा सर्माया है।
सुनहरी – धानी फसल बन इन खेतों में लेहराऊंगा,
हरियाली की चादर ओढ़े तुझसे लिपट ही जाऊंगा,
हूं तुझसे जन्मा ,तुझमें ही समाऊंगा,
में रख बन तुझमें ही वीलीन होजाऊंगा,
ना तुझसे जुदा हो पाऊंगा,
आज जिसने खून से नहलाया है,
उसे अंगारों से देहकाऊंगा,
तेरे हर कतरा – ए – अश्क को
बदल सुनामी में
प्रलय – ताड़व मचाऊंगा।।
की अपनी शौर्य शहादत से,
हौसला – ऐ – इरादों से,
दुश्मन – ए – नापाक खूनी वजूद को मिटादूंगा,
और कुछ हो  ना हो
वतन परस्ती के जस्बे से,
हिमालय की ऊंची चोटी पे अपने खून से लिख जाऊंगा ,
वन्दे मातरम,वन्दे मातरम।।
लेखिका परिचय :- संगीता केस्वानी

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