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मंदाकिनी

सीमा गर्ग “मंजरी”
मेरठ कैंट (उत्तर प्रदेश)

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अस्पताल के कमरे में प्रसव पीड़ा से मुक्ति प्रयत्न हेतु रीमा चिकित्सक की सलाह से टहल रही थी। प्रसव पीड़ा बढती जा रही थी। उसका पति समीर कभी कमर सहलाता तो कभी सिर अपने कन्धे पर रख मन बहलाने के लिए कोई चुटकुला छोड देता।
तभी नर्स ने रीमा को प्रसूति कक्ष में ले लिया।
बेचैन समीर बाहर चक्कर लगाते हुए सोचने लगा।
वे दोनों अपने गाँव से बाहर शहर में नौकरी पर आये थे। यूँ तो रीमा ने सासूमाँ को फोन कर दिया। परन्तु उनको गाँव से पहुँचने में थोड़ा सा टाइम तो लगना ही था। उनके गाँव में नवरात्रि उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। पिछली बार नवरात्रि पर समीर भी छुट्टी लेकर रीमा को साथ ले दस बारह दिन माता पिता के पास रह कर आया था।
नवरात्रि उत्सव में मातारानी की अलौकिक वात्सलयमयी छवि रीमा के हृदय में अंकित हो गयी थी। मातारानी की दिव्य शक्ति करूणा की महिमामयी कहानियाँ सुन रीमा का हृदय माता के प्रेम से अभिभूत हो उठा। अब उसके हृदय में निरन्तर माँ स्वरुपा कन्या रत्न धन प्राप्ति करने की इच्छा बलवती होती जा रही थी। उसने समीर से कहा कि-
सुनो समीर…!
सासु माँ जी के कहने पर मैंने भी मातारानी से अरदास लगाई है कि- “हे माँ! मैं तेरे जैसी शक्ति स्वरुपा प्यारी सुकोमल बिटिया की माँ बनना चाहती हूँ।”
“उसके शुभ मंगल चरणों से मेरा घर आँगन भर देना। माँ इस छोटी सी आरजू मेंं अपने जीवन की खुशियाँ माँगती हूँ। माँ आपके आशीर्वाद स्वरूप हम उसका नाम मंदाकिनी रखेंगें।
समीर ने रीमा की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे हँसकर गले से लगा लिया था।
और सच में उसके विश्वासी मन की विजय हुई।
“जब काली कजरारी बड़ी आँखो वाली गोल मटोल रूई के फाहे जैसी सुकोमल नन्हीं सी प्यारी मंदाकिनी को नर्स ने समीर की गोद में दिया तो हर्षित समीर अपलक उसकी दिव्यता को निहारने लगा।”

परिचय :- सीमा गर्ग “मंजरी”
निवासी : मेरठ कैंट (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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