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मां शबरी चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर  मालवा म.प्र.
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भक्ति शिरोमणि मातु है, शबरी सुंदर नाम।
रामनाम सुमिरन किया, पाया बैकुंठ धाम।।

सीधी साधी भोली-भाली।
दंडक वन में रहने वाली।।१

सबर भील की राजकुमारी।
करुणा क्षमा शीलाचारी।।२

बेटी श्रमणा सबकी प्यारी।
सुंदर रूपा बढ़ व्यवहारी।।३

बीता बचपन भइ तरुणाई।
समय देख कर भई सगाई।।४

फिर पिता ने ब्याह रचाये।
जाति भाई सभी बुलाये।।५

मंडप बंदन खूब सजाये।
बेलें बूटे फूल लगाए।।६

नगर गांव में बजी बधाई।
नाचे गावे लोग लुगाई।।७

समझ पाए बरात बुलाई।
बूढ़े बालक सबमिल आई।।८

भोज रसोई मेढा़ लाई।
दृष्य देख शबरी घबराई।।९

करुणा से आंखे भर आई।
उपाय कोई समझ न पाई।।१०

सौ जीवों की जान बचायें।
कोई बात सुझा ना पाये।।११

मंडप छोड़ा शबरी भागी।
प्रभु की भक्ती मन में लागी।१२

गुरु मतंग के आश्रम आई।
चरण छुए फिर आशीष पाई।।१३

श्रृद्धा भक्ति गुरु ने जानी।
बेटी जैसी निर्मल मानी।।१४

अंत समय सुर लोक सिधारे।
बोले बेटी राम सहारे।।१५

नियमधरम का पालन करना।
राम नाम को रोज सुमरना।१६

दस हजार बरस तप कीना।
तरुणा तन अब वृद्धा दीना।।१७

मगन होय नित प्रभु को ध्याती।
राम राम कह भजन सुनाती।।१८

कोयल तोता कागा आते।
दाना पानी सभी यहां पाते।।१९

हिरणों की भी जोड़ी आती।
घांस पात खा रोब दिखाती।।२०

शेर नेवले सांप दिखाते।
कोई किसी को नही सताते।।२१

जंगल में भी मंगल देखा।
ऐसा मेला संत विशेषा।।२२

रोज राह पर फूल बिछाती।
कांकर पाथर दूर हटाती।।२३

श्याम केश सब भये सफेदा।
सिकुड़ी चामा जीवन शेषा।।२४

देखत देखत नैन गंवाई।
गुरु की बात नहीं भुलाई।।२५

हुआ राम को जब वनवासा।
संतसमागम दुखिया आशा‌।२६

राम लखन जब भटकत आये।
शबरी के आश्रम में धाये।।२७

कोई इसका भेद न पाये।
पलक पांवड़े आन बिछाये।।२८

रामलखन को आवत देखा।
खोया आपा भूली वेशा।।२९

दौड़ी दौड़ी प्रभु ढिंग आई।
चरणो में गिर आशिष पाई।।३०

दोनों हाथों राम उठाया।
माता कह के गले लगाया।।३१

बहुत देर तक भूली देहा।
जैसे मिथिला होत विदेहा।।३२

राम लखन को कुटिया लाई।
प्रेम भाव से दिया बिठाई।।३३

गुरु मतंग की बात बताई।
जय जय जय मेरे रघुराई।।३४

श्रद्धा भाव से बैर खिलाती।
खाटे चाखे दूर हटाती।।३५

बड़े प्रेम से रामहि खाये।
नभ से देव सुमन बरसाये।।३६

लछमन भेद समझ नहिं पाये।
वहीं बैर संजीवन आये।।३७

नवधा भक्ति राम सिखाई।
शबरी अपने धाम पठाई।।३८

जय जय जय हे शबरी माई।
सारा जग मां करत बड़ाई।।३९

मंदिर एक बना है भारी।
दर्शन करते भगत हजारी।।४०

फागुन कृष्ण द्वितिया तिथि, होता मंगलाचार।
अंतकाल सुधारी के, भव से होती पार।।

परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए शैक्षणिक, धार्मिक महापुरुष, महिला सशक्तिकरण आदि भागों में बांटा जा सकता है। उन्होंने अपने १० वर्ष की यात्रा में शानदार ५० से अधिक चालीसा लिखकर एक रिकॉर्ड बनाया है। इनका प्रथम अंग्रेजी चालीसा दीपावली के दिन सन २०१० में प्रकाशित हुआ तथा ५० वां चालीसा रक्षाबंधन के दिन ३ अगस्त २०२० को सूर्यकांत निराला चालीसा प्रकाशित हुआ।
रक्षाबंधन के मंगल पर्व पर डॉ दशरथ मसानिया के पूरे ५० चालीसा पूर्ण हो चुके हैं इन चालीसाओं का उद्देश्य धर्म, शिक्षा, नवाचार तथा समाज में लोकाचार को पैदा करना है आशा है आप सभी जन संचार के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को दिशा प्रदान करेंगे।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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