डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर मालवा म.प्र.
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होल्करों के वंश में, अहिल्या भइ महान।
भारतभूमि धन्य करि, कीना जन कल्याण।।
जय जय जयति अहिल्याबाई
तिहरी कीरति सब जग छाई। १
कोख सुशीला से जग पाया।
पिता माणको की हो छाया। २
धनगर ग्वाला बेटी माया।
इंदुर नगरी धन्य बनाया।। ३
चौड़ी गांव जनम तुम्हारा
सुंदर जस छाया संसारा। ४
बालपने की कथा पुरानी।
शिव को अर्पण कीना पानी। ५
राव मल्हार आपहि देखा।
सादा जीवन कन्या वेशा। ६
उमा रूप पाया महरानी।
गाथा आपन कवी बखानी। ७
खांडे रावा संग भवानी।
चौड़ी से रथ इंदुर आनी। ८
काशी मंदिर को बनवाया।
विश्वनाथ पूजन करवाया। 9
गंगा रेवा घाट बनाये।
बापी कूआ बहुत खुदाये। १०
इंदुर राजा की थी रानी।
माहेश्वर कीनी रजधानी। ११
प्रजा कारणे कष्ट उठाया।
देवी माता का पद पाया। १२
शिव का पूजन करती रानी।
मां रेवा का पीती पानी। १३
चारो धाम बारह शिवालय।
सात पुरी में निर्मित आलय। १४
घाट-घाट पे नाम तिहारा।
बाट-बाट गावे संसारा। १५
यशवंतराव वीर प्रतापी।
जिनको तुमने कन्या सौपी। १६
भरतपुरी की करी चढ़ाई।
शत्रु से पती धोखा खाई। १७
धीरे-धीरे जम का आना।
खांडेरावा कीन पयाना। १८
मांग सिंदूर पोछा रानी।
भीषण संकट आंखों पानी। १९
देव सरीखे ससुर तुम्हारे।
हक दे दीने तुमको सारे। २०
मालेरावा कालहि खाना।
मुक्ता ने भी कीन पयाना। २१
पूत-पिता पति ससुर जमाई।
बेटी की भी चिता बनाई। २२
दुश्मन ने जब आंख दिखाई।
ज्वाला से उनको उड़वाई। २३
अपना पौरुष आन दिखाया।
तुम्हरे बल से जग थर्राया। २४
माले मुक्ता की हो माता।
जीवन भर झेले संतापा। २५
राघोबा को मार भगाया।
चंद्रावत को सबक सिखाया। २६
प्रजा तुमहि संतान सी पाला।
दुष्टन को तो जेल मे डाला। २७
नवदुर्गा का रूप बनाई।
शैलसुता बन चौडी आई। २८
कन्या रूप बनी ब्रह्मचारिणी।
चंद्र घंटा तुम जगत तारिणी। २९
मां कुष्मांडा रूप बनाया।
पति सेवा में ध्यान लगाया। ३०
इस्कंद बनके गृहस्थी चलाती।
लालन को तो दूध पिलाती। ३१
अन्यायों से लडी भवानी।
कात्यायन सी बन के आनी। ३२
दुश्मन को भी मार गिराया।
काली का तब रूप बनाया। ३३
बेटी को जब राह बताया।
जय गौरी जगदंबे माया। ३४
माता नानी का पद पाया।
सिद्धी दाती तेरी छाया। ३५
तुमसा कौन जगत में माता।
न्याय धरम करमो की थाता। ३६
तीस बरस तक शासन कीना।
सत्तर आयु में ब्रम्ह लीना। ३७
काली लछमी मां की ममता।
प्रातः उठके तुमको भजता। ३८
जय जय जय माता कल्याणी।
सेवा सत्य शील मह रानी। ३९
दास मसानी ने पद गाया।
बेड़ा आपन पार लगाया।। ४०
पूत पति अरु ससुर को, कंधा दीना आप।
मातु नर्मदा सेवती, खूब सहे संताप।।
बेटी से देवी बनी, माता का वरदान।
सत्रह सौ पिंचाणवे, रानी का निर्वाण।।
परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए शैक्षणिक, धार्मिक महापुरुष, महिला सशक्तिकरण आदि भागों में बांटा जा सकता है। उन्होंने अपने १० वर्ष की यात्रा में शानदार ५० से अधिक चालीसा लिखकर एक रिकॉर्ड बनाया है। इनका प्रथम अंग्रेजी चालीसा दीपावली के दिन सन २०१० में प्रकाशित हुआ तथा ५० वां चालीसा रक्षाबंधन के दिन ३ अगस्त २०२० को सूर्यकांत निराला चालीसा प्रकाशित हुआ।
रक्षाबंधन के मंगल पर्व पर डॉ दशरथ मसानिया के पूरे ५० चालीसा पूर्ण हो चुके हैं इन चालीसाओं का उद्देश्य धर्म, शिक्षा, नवाचार तथा समाज में लोकाचार को पैदा करना है आशा है आप सभी जन संचार के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को दिशा प्रदान करेंगे।
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