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किस्मत से समझोता

मंजिरी पुणताम्बेकर
बडौदा (गुजरात)

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                              आज सुबह उठते ही नितिशा के हाथों की हरी चूड़ियाँ खनखना गईं। चूड़ियों को देख उसे याद आया कि कल उसकी शादी है। न जाने क्यूँ उसे बार-बार लग रहा था कि मम्मी से कह दे कि उसे शादी नहीं करनी है। नितिशा ने उसकी सहेली शुचि को फोन लगा कर कहा। शुचि ने समझाया कि टेंशन न ले। हर लड़की को शादी से पहले टेंशन होता ही है। नितिशा के पापा न होने से सारा भार उसकी मम्मी के कंधे पर था। शायद नितिशा को टेंशन मम्मी को छोड़ सीधे अमरीका जाना था। और आज नितिशा शादी का जोड़ा पहन अपने ससुराल जाने को भारी मन से तैयार थी। वह अपना सब कुछ छोड़ एक अनजान आदमी के साथ उसके घर में, उसके घर को अपना घर कहने, उसकी माँ को अपनी माँ जैसा आदर देने जा रही थी। जाते जाते उसने माँ की तरफ देखा तो माँ ने समझाया बेटा यही जीवन की रीत है। हर लड़की को शादी कर पराया होना ही होता है। लेकिन नितिशा दूसरी लड़कियों की तरह नहीं थी। उसने तो मास्टर्स किया था। वह नौकरी करना चाहती थी। दुनिया जीतना चाहती थी। अपना अस्तित्व स्थापित करना चाहती थी। लेकिन आज उसे शादी कर ससुराल जाना पड़ा। पर वो ये जिंदगी नहीं जीना चाहती थी। रिश्तेदार, अड़ौसी पड़ौसियों ने उसकी मम्मी की जान पूछ पूछ कर खा ली थी कि नितिशा की शादी कब करोगे? नितिशा और देवांग ने सिर्फ दो ही महीने वीडियो कॉल पर बातें की थीं। और तीसरे महीने में शादी भी हो गईं। अब ससुराल की तरफ नितिशा अपने आंसू रोक गाड़ी में बैठ सवार हो गईं। उसका रुमाल पर्स में था पर पर्स उसके पास नहीं थी। रास्ते में नितिशा सोचती जा रही थी कि शादी भी बड़ी अजीब है।इसमें लड़की जूनियर और लड़का सीनियर हो जाता है। देवांग ने नितिशा से कहा कि अब तुम नितिशा गोयल नहीं तुम नितिशा सोडानी हो गईं हो। सुनते ही वह ठिठक पड़ी। थोड़ी देर बाद बोली कि मेरे साथ मायके का सिर्फ गोयल नाम ही तो है। कम से कम वो नाम तो मेरे साथ ही रहने दो।
सात दिनों बाद उनको अमेरिका जाना था। एयरपोर्ट जाते जाते नितिशा को एहसास हो रहा था कि उसका घर छूट रहा था, उसकी माँ छूट रही थी, उसका अपना शहर छूट रहा था। और कुछ ही घंटों में देश भी छूटने वाला था। कुछ था जो उसके पास वो था उसका नाम जिसे उसने नहीं बदला था। अमेरिका पहुंचते ही नितिशा का मन बोला ये मेरा घर नहीं है। ये मेरा बरामदा भी नहीं है। मेरा छज्जा भी नहीं है। ये मेरी खिड़की भी नहीं है। वह ब्याहता बन देवांग के घर आ गईं थी। वह वहुत थकी हुई थी। शादी से पहले उसने खुद की शादी में जम कर काम किया था। फिर ससुराल में मंदिरों और पूजा में बिझी। अब यहाँ दिन रात का फर्क। उसका जी कर रहा था कि इस अनजान घर के किसी अनजान कोने में सो सकूँ और जब उठूँ तो सब वैसा ही हो जैसा मैं अपने घर छोड़ आई थी। उसे उसके घर वापस आना था जो बिलकुल ही असम्भव था।पहली बार वो बिलकुल अकेला महसूस कर रही थी। उसने चारों तरफ देखा और कहा कि अब इस घर को उसे अकेले ही लगाना होगा। उसे लगा कि शायद देवांग उसकी मदद करेगा पर देवांग तो आराम से कुर्सी पर जा बैठा जैसे उसे किसी ने कह रखा हो कि वह लड़की है उसे सारा काम करने देना नहीं तो वो डोमिनेट करेगी। पर किस्मत से नितिशा ने समझोता कर लिया था। थोड़ी ही देर में देवांग की बड़ी बहन अपने पति और बच्चों के साथ आई और खाना खाकर गईं। नितिशा को खुद पर ही बहुत गुस्सा आया क्यूँ वो अमरीका आई? यदि भारत में होती तो लगा लगाया घर मिलता और काम करने को नौकर चाकर भी होते। पर यहाँ तो सब काम अपने हाथों से ही करना होता है। तभी उसकी चाची सास आई और नितिशा की हालत देख देवांग से कहा देवांग क्या यह उसके स्वागत का तरीका है?
अरे अपनी बहन को तुम खाना बाहर ही खिला देते। उसकी शादी को छः साल हो गये क्या आज भी वो दस लोगोँ का खाना बना सकती है? ये बिचारि नितिशा तो आज ही आई है।

परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर
निवासी : बडौदा (गुजरात)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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