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आशिक तू हमें

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच

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आशिक तू हमें, दिलको कू-ए-यार बना दे।
या रब तू अपने, इश्क का बीमार बना दे।।

ये सिर तेरे आगे ही झुके मालिके जहां।
तेरे ही आगे हाथ उठे मालिके जहां।।
दिल तेरी हम्दे पाक पढ़े मालिके जहां।
पग राहे हक में ही ये बढ़े मालिक जहां।।
यूँ हक की सल्तनत का पैरोकार बना दे।
या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।।

इंसाफ पर चलने की हमें राह बता दे।
मिलने की तमन्नाओं को तू अपना पतादे।।
तेरे हैं इस जहान को मौला तू जता दे।
खाते में फरिश्तों से कह के नाम खता दे।।
नबीयों का रसूलों का वफादार बना दे।
या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।।

माले हराम पेट में जाने नहीं पाए।
छल दिल में कभी पैर जमाने नहीं पाए।।
नफरत जेहन में भूल के आने नहीं आने नहीं पाए।
गुस्सा कभी भी सिर को उठाने नहीं पाए।।
यूँ जिंदगी में सब्र को साकार बना दे।
या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।।

जो कुछ हो अपने पास उसे बांटते रहें।
लोगों की भलाई में उम्र काटते रहें।।
हर भेद की खाई को यहां पाटते रहें।
अमृत यूँ सद्गुणों का सदा चाटते रहें।।
दर्दे जहां का दिल मेरा आगार बना दे।
या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।।

मैं “मैं” न रहूं “तू” ही नजर आए खुदारा।
कशकोल में सागर ही समा जाए खुदारा।।
दिन-रात तेरा रंग ही गहराए खुदारा।
एक “लौ” ही सिर्फ बदनमें लहराए खुदारा।।
“अनंत” ‘लौ’ को रहमतों की धार बना दे।
या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)


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