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स्नेह भोज

मनीषा शर्मा
इंदौर म.प्र.

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स्नेह भोज बस नाम ही रह गया है। वर्तमान में विवाह आदि समारोह में होने वाले भोज को स्नेह भोज तो कदापि नहीं कह सकते। हाल ही में हुए ऐसे ही एक आयोजन में मेरा जाना हुआ। भांति भांति के भोजनोकी व्यवस्था थी। महक से मन ललचा रहा था। मुंह में पानी भी आ रहा था, किंतु भोजन प्राप्त करने की होड़ लगी हुई थी। और मेरा तो प्लेट लेना ही मुश्किल हो रहा था। एक कदम आगे बढ़ाती तो किसी का धक्का दो कदम पीछे कर देता। बड़ी मशक्कत के बाद प्लेट तो मिल गई, पर असली जंग तो अभी बाकी थी।१५-२० प्रकार की सब्जियां, रोटी, पराठा, पुरी, चार पांच तरह की मिठाइयां, नमकीन, दही बड़ा और हां आइसक्रीम इन सब तक पहुंचना और उन्हें पाना बहुत मुश्किल था। मैंने भी साड़ी के पल्लू को कमर में दबाया और आगे बढ़ी। सलाद तो बेचारा लोगों की राह ही देख रहा था। मैंने कुछ टुकड़े ककड़ी, टमाटर के उठाए और फिर किसी प्रकार दो-तीन तरह की सब्जी मेरी प्लेट में आ गई। फिर रोटी के लिए लंबी कतार में खड़ी हो गई। आधा घंटा हो गया प्लेट में रखी सब्जियां मुझे घूर रही थी। तभी किसी सज्जन ने अपनी पत्नी को रोटी देने के लिए भीड़ से हाथ बढ़ाया, तो मैं उनके हाथ से रोटी छीनकर मुंह छुपाते हुए आगे बढ़ गई। वही एक रोटी मैंने और मेरे पति ने आधी-आधी खाली। दोबारा रोटी की प्रतीक्षा करने से अच्छा था हम कुछ और आइटम खा लेते। मैंने पति जी से कहा कुछ आइटम आप बटोरीए और कुछ मैं। वो नमकीन की ओर चले गए और मैं मीठा लेने पहुंची। करीब १५ मिनट बाद हम उसी जगह मिले। मैं उनके हाथ में कचौड़ी और दही बड़ा देखकर खुश हो गई। मेरे हाथों में भी बर्फी गुलाब जामुन और सीताफल रबड़ी थी। हम दोनों एक दूसरे को देख रहे थे, तभी किसी का धक्का लगा दही बड़ा इनकी शर्ट पर था और गुलाब जामुन की चाशनी और रबड़ी मेरी साड़ी पर। ऐसी हालत में वहां और रुकना ठीक नहीं लग रहा था। हाथ में बचे दो टुकड़े बर्फी के हम दोनों ने खाए और वहा से निकल पड़े और घर पहुंच कर फटाफट पालक की सब्जी और रोटी बनाकर हम दोनों ने स्नेह भोज किया।

 

परिचय :-  मनीषा शर्मा
जन्म : २८/८/१९८२
शिक्षा : बी.कॉम., एम. ऐ.
लेखन शुरुआत वर्ष : लेखन में रुचि बचपन से है
लेखन विधा : कविता ,व्यंग्य ,कहानी समसामयिक लेखन।
व्यवसाय : आकाशवाणी केंद्र इंदौर उद्घोषक
पता : इंदौर म.प्र.


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