भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल मध्य प्रदेश
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प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।
दंभ द्वेष छल तम मिट जाये, नय अभिनंदन में।।
दीप्त देह से, फिर उजियारा, कर्मों का फैले।
धुल जाये आबद्ध चित्त जो, भ्रम में है मैले।।
ज्योतित हो फिर करुण प्रेमरस, उर के दर्पण में।।
प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (१)
आलोकित पुरुषार्थ पुंज से, भू परिमंडल हो।
चिर प्रदीप से, दिग दिगंत तक कणकण उज्ज्वल हो।।
कुटिल वृत्तियों, के चंचल पग, जकड़े बन्धन में।।
प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (२)
विषम तटों के, तट बन्धों से, दीवारें जोड़े।
कलुष भेद के, निंदित बंधन आओ हम तोड़े।।
रुचिर प्रेम की, सघन उर्मियाँ, थिरके चिंतन में।।
प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (३)
निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश
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