श्रीमती विभा पांडेय
पुणे, (महाराष्ट्र)
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आज रक्ताभ लाल अंबर को देख
मन ने कुछ अलंकार ओढ़े।
उस सुंदरता में डूब हृदय ने
आराध्य से उसके कुछ अनुपम दृश्य जोड़े।धरती और आकाश लगते जैसे
सिया-राम की अनुपम जोड़ी।
रंगों का सजा ऐसा ताना-बाना
जैसे प्रकृति ने प्रेम की चादर ओढ़ी।
लाल रंग का वितान ताने
रवि ने श्रेष्ठ मंडप सजाया।
अपनी रश्मियों से सुरभित कर
फूलों से रंगोली बनाया।नील गगन का अलौकिक सौंदर्य
जैसे श्रीराम का रूप नयनाभिराम।
श्याम रंग पर लाल वसन को निरख
अपलक तकते सब, जैसे आ गए राम।
इस रूप पर सम्मोहित होकर
रवि ने मन भर किया नभश्रृंगार।
अपने रश्मिकोश को लुटा-लुटा।
राम के प्रतिरुप को दिखलाया प्यार।
धरती जैसे माँ सीता की
स्वच्छ, पवित्र, सात्विक, धवल मूर्ति
हरसिंगार, टेसू, कमल, गुलाब, जासवंत
के लाल जोड़े में खूब शोभती।
लगता जैसे माँ सीता ही
फिर धरा रूप में आईं हैं।
श्री राम के अनुरूप रूप को लख
वो मन ही मन में सकुचाई हैं।
विवाह मंडप की ओर बढ़ती धरती
किरणों की लाल चुनर ओढ़े।
धीमे-धीमे पग को रखती
लज्जा से नत नयनों में अश्रु थोड़े।मंगलाचार करती सखियाँ
उषा की गूँजें स्वर लहरियांँ।
मोर का नृत्य और कोयल की तान।
अनिल का बजता मृदंग
और दिशाओं का जयघोष गान।
इस मिलन का साक्षी बनता
ब्रह्मांड का हर एक कोना।
आंनद के अतिरेक से
पलकें भूलीं जैसे झपकना ।
चारों ओर हो रहा था यशोगान
राम-सिया के सौंदर्य का जयगान।
प्रकृति का अनोखा रूप सजा
सबको मिल रहा था उचित मान।
माँग में चमकती सिंधूरी आभा
सज्जल प्रेम से परिपूर्ण नयन
लज्जा से आरक्त कपोल
आकंठ समर्पण में डूबा धरा का मन।
अपनी प्रिया को देने मान
धरती पर उतर आया आसमान।
वो क्षितिज मिलन का साक्षी बना
इतराता पाकर समुचित सम्मान।
अंबर के प्रेम से रंगी धरा
हैं लाल गाल, अंग-अंग निखरा।
टेसू , गुलाब, गुलमोहर खिला
दर्शाती अंबर से नेह गहरा।
प्रकृति भी धरती-अंबर पर
बस वारी-वारी जाती है।
उनके रूप में सिया-राम को पा
वो भक्ति का प्रतिफल पाती है।
वो भक्ति का प्रतिफल पाती है।
परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड.
जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी
निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र)
विशेष : डी.ए.वी. में अध्यापन के साथ साथ साहित्यिक रचनाधर्मिता में संलग्न हैं ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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