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लुटती रही अस्मत

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रचयिता : शाहरुख मोईन

लुटती रही अस्मत भरती रही कोई सिसकियां,
 जहनों दिल पर गिरती रही पल-पल बिजलियां।
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 उस मासूम कली की खताए क्या थी या रब ,
 चमन उजरता रहा मरती रही तितलियां।
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 मूरत बन भगवान खरे रहे मोन जब,
 मसली जाती रही है हैवानों से कलियां।
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चिखी चिल्लाई रोई और वह गिरगिरई,
 बहरे हो गए मूरत सारे खुब चिखी तन्हाइयां।
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 इस देश में तेरा आना लाडो दुश्वार हुआ,
चिख चिख के कहती है कहानी पुरवाईया।
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गुड्डे गुड़ियो से खेलने वाले बचपन का हाल,
 कब तक बेटियो से होती रहेगी रुसवाईयां।
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शरीयत के कानून का हो अगर ऐहतराम जो,
 उजर कर तबाह हो जाएगी गुनाहों की बस्तियां।
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मुहाफिज ही बन गए देखो कातिल *शाहरुख* ,
अदालत में दफन होकर रह गई जाने कितनी कहानियां।
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लेखिक परिचय :-
नाम – शाहरुख मोईन अररिया बिहार


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