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बंद पिंजरा

राजेश चौहान
इंदौर मध्य प्रदेश

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मन दुखी हैं और तन्हाईयों में हूं कैद
क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता
नित खुले आसमान में विचरण हैं मेरा काम
क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता
वृक्षों और पेड़ों पर हैं मेरा प्यारा सा धाम
क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता
सांझ-सवेरे मधुर चहकता मेरा गान
क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता
चुन-चुन कर तिनकों से भी नीड़ न बनाने से दुखी हूं
क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता
मुझे इस “पिंजरे में से आजाद” कर दो
क्योंकि मैं बंद पिंजरे में नहीं रह सकता

परिचय :- राजेश चौहान (शिक्षक)
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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