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जिगर के ख़ून

निज़ाम फतेहपुरी
मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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ग़ज़ल – १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

जिगर के ख़ून से लिखना वही तहरीर बनती है।
इन्हीं कागज़ के टुकड़ों पर नई तक़दीर बनती है।।

ग़ज़ल इतनी कही फिर भी न समझा हम भी शायर हैं।
मेरी भी ज़िंदगी गुमनाम इक तस्वीर बनती है।।

किसी को जीते जी शोहरत किसी को मरने पर मिलती।
कहीं ग़ालिब बनी किस्मत कहीं ये मीर बनती है।।

तुम्हारी सोच कैसे इतनी छोटी हो गई यारों।
हमारे नर्म लहजे से भी तुमको पीर बनती है।।

‘निज़ाम’ अपनी क़लम रखकर दुबारा क्यों उठाई है।
बुढ़ापे में बता राजू कहीं जागीर बनती है।।

परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी
निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं


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