Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

जीवंत गाँव : आत्मनिर्भर भारत, सशक्त भारत

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी
वाराणसी, काशी

************************

                            आजकल ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का नारा बुलंदियों पर है, हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्रद्धेय मोदी जी का नया संकल्प आत्मनिर्भर भारत का है। यह नया संप्रत्यय या संकल्पना नहीं है अपितु अत्यंत पुरानी है। राष्ट्रपिता बापू तो स्वराज की कल्पना ही आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान, आत्मगौरव और राष्ट्र बोध के रूप में ही करते थे। पहले हमारे गाँव आत्मनिर्भर थे। आपसी भाई-चारा, सद्व्यवहार, शालीनता, संस्कार वहाँ के जन जीवन में रचा बसा था। लेकिन, विकास, आधुनिकता, नगरीकरण, वैश्वीकरण, वर्चस्व और सत्ता की भूख ने सब निगल लिया। गाँवों की क्या गजब जीवन शैली थी, पुजारी और पशुच्छेदन करने वाले चमकटिया, सबकी अपनी-अपनी इज्जत थी, सम्मान था। कोई किसी भी जाति का हो, सबसे कोई न कोई रिश्ता था- बाबा, काका-काकी, भाई-भौजी, बूढ़ी माई, बुआ, बहिन, बड़की माई, आजी। सबकी इज्जत और मर्यादा थी। धन की असमानता कितनी भी रही हो, अट्टालिकाओं और झोपड़ियों का अंतर भले रहा हो, जाति-पांति, ऊंच-नीच, छुआ-छूत, कितना भी रहा हो। लेकिन, दिलों में दूरी नहीं हुआ करती थी। कोई घटना-दुर्घटना होने पर गाँव का दृश्य दर्शनीय होता था। किसी बरगद बृक्ष के नीचे या किसी कुँए की जगत पर या गाँव से सटी बाग में, पूरा गाँव इकट्ठा हो जाता था। दुर्घटना के दिन पूरे गाँव में चूल्हा मुश्किल से जलता था। सामान्यतया लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। शादी-ब्याह, तेरही, बरही या भोज सबके आपसी सहयोग से देखते-देखते हो जाते थे, बोझ नहीं लगता था और सभी हर्षोल्लास के साथ, अपनी इज्जत समझ के, जुटे रहते थे, महिलाएं महावर लगाकर अवसरानुकूल गीत गाते हुए आह्लादित मन से खाना बनाने के साथ ही अन्य कामों को आसानी से निपटा लेती थी और सामंजस्य और सहयोग का अद्भुत तालमेल दिखाई पड़ता था। हाथ तो सबके तंग थे। पेट मुश्किल से भरते थे। लेकिन, सबके चेहरे खिले रहते थे। होंठों पे मुस्कान रहती थी। दिलों में प्यार का सागर हिलोरे मारता था। गाँव मे कोई भूख से नहीं मरता था। एक दूसरे को सभी के घरों की रसोई का पता होता था। जिसके गाय, भैंस नहीं होती थी उसे भी दूध, दही या मट्ठे के लिए तरसना नहीं होता था।
आज इस वैश्वीकरण ने, सत्ता की भूख ने, वर्चस्व की लड़ाई के मन रूपी राक्षस ने गाँवों की सहजता को निगल लिया है और उन्हें विद्रूप कर दिया है। ‘विकास’ नाम के धोखे ने गाँवों को ठग लिया है। उनके उत्थान के कथित नारे मृगमरीचिका साबित हुये हैं। प्राकृतिक स्रोतों के अंधाधुंध दोहन से संतुलन गड़बड़ हो गया है।
आज आत्मनिर्भरता का नारा दिया जा रहा है। ये नारा नया नहीं! महात्मागांधी का ये स्वप्न था। बापू ने “मेरे सपनों के भारत”में पूरा खाका खींचा है जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उन्होंने इसपर बहुत अध्ययन किया, चिंतन किया, व्यवहार में लाये और कई योजनाओं को क्रियान्वित भी किया। आज जब कुटीर उद्योग बचे नहीं हैं, लघु उद्योग समाप्त प्राय हैं, मध्यम उद्योगों की आर्थिक स्थिति गंभीर है, बड़े सरकारी उद्योगों या उपक्रमों की नीलामी निरंतर जारी है और फिर जब आज भी हम निवेश हेतु बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरफ निगाह लगाए बैठे है, ऐसे में भारत आत्मनिर्भर कैसे बनेगा?
गाँवों में कृषि आधारित या उससे जुड़े हुए कुटीर उद्योगों की स्थापना, छोटे-छोटे कस्बों में, वहाँ उपलब्ध कच्चे माल के अनुरूप, कुटीर, लघु या मध्यम उद्योगों की स्थापना की कोई योजना अभी धरातल पर कहीं दिखाई नहीं पड़ रही है फिर उन्हें क्रियान्वित करने का तो प्रश्न ही नहीं है। जब तक गाँवों व छोटे कस्बों में समुचित उद्योग, सड़कें, स्वच्छ पेय जल, चिकित्सालय, शिक्षण संस्थान इत्यादि जो आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए, आवश्यक हैं, व्यवस्था नहीं की जाती तब तक हर क्षेत्र का समुचित व समान विकास किया जाना संभव ही नहीं है।
जहाँ तक मैं समझता हूँ, केवल देश या प्रदेश की राजधानियों में या फिर जनपद मुख्यालय के अगल बगल उद्योंगों को स्थापित करने से, सर्वजन कल्याण होना व देश को आत्मनिर्भर बनाना दिवास्वप्न सरीखा है। इतना ही नहीं जब तक गाँवों में, छोटे कस्बों में आवश्यकतानुरूप आधारभूत सुविधाएं स्थापित नहीं होती, तबतक हमारे गाँव व छोटे क़स्बे गरीब व बीमार ही रहेंगे। “आत्मनिर्भर भारत” की कल्पना मात्र एक दिवा स्वप्न ही रहेगा या फिर कुछ काल बाद ये भी एक जुमला से ज्यादा कुछ नहीं होगा। दरअसल में गाँवों की इस जीर्ण अवस्था के मूल में हम तथाकथित विवेकी और सभ्यजनों द्वारा केवल वहाँ के संसाधनों का दोहन करना बदले में उनके विकास व उत्थान के लिए कुछ न करना ही है। हमसे अभिप्राय हर उस नागरिक से है, वो चाहे एम पी हो, एम एल ए हो, अभिनेता हो, उद्योगपति हो, व्यवसायी हो, अधिकारी हो, कर्मचारी हो, शिल्पी हो, किंतु, जो गाँवों में पैदा हुआ, पला बढ़ा लेकिन, शहर आने के बाद फिर पलट के उधर नहीं देखा, शहर की ही चकाचौंध में डूब गया। इस कोरोना काल में आज शहरी चकाचौंध कुछ धूमिल हुई है, और शहरों से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन लगातार हो रहा है। ये पलायन जहाँ एक तरफ कुछ दुसवरियाँ पैदा करेगा वही दूसरी तरफ गाँवों के उत्थान में मददगार होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। मनरेगा का दायरा बढ़ाया जाए इसे कृषि कार्य से जोड़ा जाए, इससे अन्न उत्पादन बढेगा, पराली जलाने की समस्या का समाधान होगा, मनरेगा के द्वारा पराली एकत्र कर सरकारी गौशालाओं के लिए पुआल व भूसा (चारा) एकत्र किया जा सकता है, यह आत्मनिर्भर भारत की ओर एक श्रेष्ठ कदम होगा। विशेषकर अपना देश जो जैव विविधता से सम्पन्न है, आत्मनिर्भरता असंभव नही है। यह एक अच्छा अवसर है जब गाँवों को,मजरों को फिर खुशहाल किया जा सकता है। फिर से दूध-दही की नदी बहाई जा सकती है।
सबका मंगल हो! सबका कल्याण हो! हम आत्मनिर्भर बनें, भारत महान हो…..।।

परिचय :- डॉ. ओम प्रकाश चौधरी
निवासी : वाराणसी (काशी)
शिक्षा : एम ए;पी एच डी (मनोविज्ञान, एलएलबी
सम्प्रति : एसोसिएट प्रोफेसर एवम विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग श्री अग्रसेन कन्या पी जी (स्वायत्तशासी) पी जी कॉलेज वाराणसी।
लेखन व प्रकाशन : समाचार पत्र-पत्रिकाओं में आलेख लेखन। कई पुस्तकों में अध्याय लेखन सहित ३ पुस्तकें प्रकाशित। भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद,दिल्ली द्वारा शोध प्रबंध प्रकाशित।
रुचि : पर्यावरण संरक्षण विशेषकर वृक्षारोपण।
सम्मान : गाँधी पीस फाउंडेशन, नेपाल द्वारा “पर्यावरण योद्धा सम्मान”प्राप्त।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉🏻  hindi rakshak manch 👈🏻 … राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे सदस्य बनाएं लिखकर हमें भेजें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *