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अपनी धुन में जीलो

बृजेश कुमार सिंह
करण्डा, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)
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कहते है सब लोग,
समय बङा बलवान..
मन मे आया एकदिन
विचार अति महान्..
क्यूँ न मै भी
समय का साथी बनजाऊॅ..
उसके साथ-साथ चलकर
बलवान क्यूँ न कहलाऊॅ.?

फिर क्या था जीवन में..?
उठना चलना ‘समय’ के संग मे..
‘समय’ संग चलने के चक्कर मे,
कितनी खुशियों को खोया मैं..
जीवन को गमों मे डुबोया मैं..

चलते-चलते थक हार गया..
व्यर्थ मे ये जीवन गुजार गया..
आगे बढता ‘समय’ यह ताङ गया..
मेरा हमराही अब तो हार गया..

‘समय’ ने मुझको यह समझाया,
“मेरे साथ-साथ क्यूँ चलता आया..
मेरी नियति तो चलना है ..
पर तुमको तो एकदिन मरना है..
मेरा साथ पकङने से
सोचो तुम क्या पा जाओगे ?
जो कुछ कमाया तूने
सब छोड़ यहीं पर जाओगे..
अपनी धुन में जीलो प्यारे..
ये जीवन न दुबारा पाओगे..!!”

परिचय :-  बृजेश कुमार सिंह
निवासी : करण्डा, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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