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जिंदा रहे यादें

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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मेरी आँखों में क्यों तुम
आँसू बनकर आ जाते हो।
और अपनी याद मुझे
आँखों से करवाते हो।
मेरे गमो को आँसुओं के
द्वारा निकलवा देते हो।
और खुशी की लहर का
अहसास करवा देते हो।।

मुझे गमो में रहने और
उनमें जीने की आदत है।
पर हँसते हुए लोगों को
दुआएँ देना मेरी आदत है।
तुम रहो सदा खुशाल
अपनी नई जिंदगी में।
मैं तुम्हें खुश देखकर
अपने गम भूल जाती हूँ।।

बदलते हुये इस जमाने में
कुछ तो नया होना चाहिए।
अपनी मोहब्बत का अहसास
दूर होकर भी होना चाहिए।
भले ही उन्हें मोहब्बत का
अहसास आज न हो ।
पर जमाने की नजरो में
तो इसे जिंदा रहनी चाहिए।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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