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नन्हा बीज

रुचिता नीमा
इंदौर म.प्र.

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एक छोटा सा नन्हा सा बीज
वो प्यारा सा बीज
कभी मिट्टी में बोया था मैंने,,,
सोचा नहीं था कि अनन्त
सम्भावनाएं है उसमें

पहले उससे अंकुर निकला,
नई जड़े जमीन को पकड़ने लगी,,
फिर नव कोपल आये
फिर तना, शाखा, फूल फल
और वो बढ़ता ही चला आकाश की ओर

बस थोड़ी सी मिट्टी मांगकर,,,
और फिर वो देता ही चला
कभी छांव, कभी फल, कभी आश्रय
और भी बहुत कुछ

और एक हम है
जो उस मुठ्ठी भर मिट्टी के बदले
लिये जा रहे उससे , उसका सबकुछ
रोज कुछ न कुछ लेते जा रहे उससे,,,,
लेकिन वो आज भी
मुस्कराकर, सर झुकाकर
देता ही जा रहा हम जैसे स्वार्थी लोगो को

वो जड़ होकर भी चुका रहा कर्ज उस माटी का
और इंसानो को देखो
अपना तो ठीक, लेकिन दुसरो का भी हक़ खा रहा

समझ नही आ रहा कि जड़ वृक्ष है या इंसान
जो प्रकृति के करीब होकर भी उसे समझ नही पा रहा

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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