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ज़िंदगी…”तू रुक, वक्त को जाने दो!”

निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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दरिया-ए-वक्त पर जोर नहीं, वो बहता अपनी रवानी में,
अच्छी हो या बुरी सोहब्ते, ना बिसराता कभी गुमानी में,
तू ही थम जा! दम भर रुक जा! वो तो बंधा उसूलों से,
हैं चार प्रहर,बस तेरे वास्ते, ना गुम हो किसी कहानी में…

लम्हा लम्हा दरक रहा हैं, जलती बुझती यादों के संग,
रुक रुक कर कहती हैं साँसे, पल छिन जी ले मेरे संग,
लहर बड़ी हैं उठती गिरतीं, ना जाने कब किस ओर बहे,
कल की फिर कल को कर लेंगे,आज तू बह जा मेरे संग…

चलते चलते आ निकले दूर, मंजिल का फिर भी पता नही,
तकते तकते शमा गुम हुईं,परछाई का कही कोई पता नही,
चलने ही चलने में राहे , पता नही कब कहा गुम हुई,
मन भर जी ले, उर की सुन ले, कल क्या होगा पता नही…

परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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